हे कृपालु करूणानिधि…..
मै जब भी मेरे अन्नत अतीत का अवगाहन करता हूँ जब भी उसका सुक्ष्मता से निरिक्षण करता हूँ तो मेरे हाथ मे only for निष्कियता, निष्फलता, निराशा का अंधकार ही नजरो मे आता है ।
मेरे आत्मरूपी प्लाट पर मिथ्या और मोह नाम के मवालियो ने भयंकर कब्जा जमा रखा है। इस कब्जे से बाहर निकलने के लिए, इनके चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए भवचक्र मे कितनी बार कितनी सारी कार्यवाही करी पर मेरे हाथ मे कुछ लगा हो तो वो मात्र निराशा ही है।
मेने इतनी सारी कार्यवाही करी है की आज तो वो भी मुझे याद ही नही है। इतनी सारी कार्यवाही कैसे याद हो सकती है?
अरे मेने तो आत्मभूमि पर भव्यातिभव्य खूबसूरत साधना का जिनप्रसाद बनाने की झंकना रखी थी। उसके लिए मेने भरचक ढेर सारे प्रयत्नो को करा। मेने मेरी पूर्ण शक्ति को झोख दिया पर मेरा सपना साकार नही हुआ।
कभी मेरे सुनहरे सपने के बीच मे काल नाम का परिबल आ कर के मुझे N.O.C देने के लिए तैयार नही होता है, तो कभी अचानक से भवितव्यता नाम की कोर्ट अडचणे पैदा कर देती और मेरे उस भव्य प्रसाद मे शिव ( मोक्ष) रूपी परमात्मा को बिराजमान करने के सपने को निचे गिरा दिती है।
फिर मुझे लगता है कि मेरा सारा काम अब तो होने वाला है इसमे कोई समस्या नही होगी और अचानक से कर्म नाम का कर्मचारी ऐसा बिखेरता है कि मेरे सारे पासे को उलटा कर देता है। मुझे लगता है कि मै साधना के शिखर पर पहुंचने वाला हूँ और कर्म रूपी कर्मचारी मुझे खाई मे लाकर पटक देता है।
इसी बीच मेरी निष्क्रियता और निः सत्वता तो मेरे सपनो को असफल करने का fix कारण तो है ही ।
प्रभु अब तो तेरे juck के बिना काम नही होने वाला है। मै जानता हूँ तेरी पहचान सब जगह है बस अब आप मेरा juck सारी जगह लगा दो।
वाचक यश विजय जी की पंक्तिया मुझे याद आ गई:
” काल, स्वभाव, भवितव्यता सगंला तारा दास रे”
तो प्रभु अब थोडी सी भी देर मत करो और मेरा सारा काम निपटा दो क्योंकि मै अब आपको छोडने वाला नही हूँ जब तक मेरे मोक्ष रूपी परमात्मा बिराजमान नही होते है ।
“हूँ तो केड न छोडू ताहरी लीधाविन शिवसुख स्वामी रे”।।