दो सद्गृहस्थ थे। एक दुसरे के पडोसी थे। एक शहर के स्कूल मे शिक्षक था तो दुसरा जिला न्यायालय मे न्यायाधीश था।
शिक्षक महाशय का चेहरा कभी भी देखो हर समय उसके चहरे पर स्मित ही नजर आयेगा। उसके चहरे पर उदासी- मायूसी की रेखा कभी नजर नही आयेगी जबकि न्यायाधीश के चहरे पर 24 घंटे विषाद ही छाया रहता है।
एक दिन शिक्षक मित्र ने अन्य पडौसियो और न्यायधीश को चाय- नाश्ते का निमंत्रण दिया।
चाय को पिते- पिते न्यायाधीश ने शिक्षक मित्र से कहाँ – की तुमसे एक बात पुछु?
शिक्षक मित्र ने बडे ही स्मित से कहाँ- की पुछो- पुछो। इसमे संकोच क्यो करते हो?
न्यायाधीश मित्र बोले – मै आपको जब भी देखता हूँ आप हमेशा खुश मिसाज मे दिखते है। मै ने कभी आपको चिन्तामग्न, उदास या गहरे विचारो मे नही देखा है। इसका क्या रहस्य है?
शिक्षक मित्र ने हस्ते हुए जवाब दिया- इसमे कोई रहस्य नही है। यह तो मेरा स्वभाव है। चिन्ता, मुश्किले सबके जीवन मे होती है। पर हर समय खुश मिसाज रहना यह मै ने नक्की करा है। इसलिए मै सदा आनन्द मे रहता हूँ। इसके लिए मेने मन को खास तैयार करा है।
सब लोग एक साथ मे बोलने लगे कि- हमेशा हर समय इन्सान खुश कैसे रह सकता है? मन को किस तरह तैयार किया है? यह हमको समझाओ।
शिक्षक मित्र ने कहाँ- आनन्द मे रहना मुश्किल नही है। सुबह जब आँख खोलो तब से मन मे संकल्प करो कि मै पुरे दिन खुश रहुंगा। प्रत्येक क्षण आनन्द मे रहुंगा। चिन्ता को दुर करूंगा। ऐसा करने से शुरूआत मे तकलीफ पडेगी। परंतु जाग्रत मन से प्रयत्न करोगे तो आनन्द मे रहने की आदत पड़ जाएगी। दुसरो के आनन्द मे कभी भी रूकावट नही डालनी चाहिए। और हमेशा खुद का आनन्द खुद को ढूढना चाहिए। प्रफुल्लीत मन से सारी चिन्ता भगा देनी चाहिए।
शिक्षक की बात सुनकर सब ने आनन्द मे रहने का संकल्प किया।
चलो हम भी ह्रदय से संकल्प करे और आनन्द मे रहे ।।
“प्रेम हमेशा माफी मांगना पसंद करता है।
अहंकार हमेशा माफी सुनना पसंद करता है ।।”