माता-पिता का उपकार अगणित है:
सभा: माता-पिता का इतना उपकार?
हां, अगणित उपकार है, जिसकी गणना नहीं हो सकती। भूतकाल में माता-पिता का अपनी संतानों पर जितना उपकार नहीं था, उसकी तुलना में वर्तमान काल में माता-पिता का आप लोगों पर अधिक उपकार मानना पड़ेगा। जिसे आप उत्तम खानदान, संस्कारी, अमीर घर के कहते हो, ऐसे घर में आज के स्वार्थी माता-पिता अपने बालक के जन्म से पहले ही उसे खत्म करने के प्रयास कर रहे हैं, यह कसाई का काम नहीं तो और क्या है? बल्कि यह तो कसाई से भी भयंकर क्रूरता है। कसाई तो पराए जीव की हत्या करते हैं; और यह लोग तो अपनी ही संतानों की हत्या करते हैं, यह कितनी निर्दयता है? ऐसी निर्दयता जिस काल में प्रतिष्ठाप्राप्त घरों में व्याप्त हुई है; उस काल में तुम्हारे माता-पिता ने तुम को जन्म दिया, इससे बढ़कर उनका अन्य उपकार क्या हो सकता है?
कुछ बेशर्म लोग तो हमसे भी आकर कहते हैं कि ‘महाराज साहब!’ इन माता-पिता का मुझ पर क्या उपकार? उन्हें तो सांसारिक मौज-मस्ती करनी थी, अपना भविष्य आगे बढ़ाना था। इसलिए उन्होंने मुझे जन्म दिया। खेलने के लिए एक जीवित खिलौना चाहिए था, इस खिलौने से खेलने में उन्हें आनंद आता था। इसीलिए हमें खिलाकर वे आनंद ही लूटते थे। इसीलिए उन्होंने हमें जन्म दिया, इसमें उन्होंने कोई उपकार नहीं किया। इसमें तो उनका एक ही प्रकार का स्वार्थ ही था।’ यह कहने वाली पुण्यात्मा से कहना है-कि भरे बाजार में आपने माता-पिता के कपड़े बिगाड़े थे, तब अपनी प्रतिष्ठा की चिंता किए बिना माता-पिता दोनों ने मिलकर सिर्फ तुम्हें संभालने पर ध्यान दिया था और आज जब अपनी वृद्धावस्था में, अपनी पराधीन अवस्था में उन्हीं माता-पिता का जरा सा मेल भी तुम्हे छुआ तो तुरंत कह देते हो कि ‘मां-बाप को सूझ ही नही पड़ता।’ क्या तुम्हें खबर नहीं कि तुम छोटे थे तब भरे बाजार में तुम्हें लेकर तुम्हारे माता-पिता निकलते थे, तब ही तुम उनके कपड़े बिगाड़ते थे। लेकिन उन्हें तो कभी तुम पर गुस्सा नहीं आया। बल्कि तुम्हारा मल-मूत्र रुकना नहीं चाहिए, वह रुकने पर बच्चा बीमार हो जाएगा, ऐसी अवस्था में तुम्हारे स्वास्थ्य की चिंता रखते थे। उनके किए उपकार का हिसाब करोगे तो उनकी सेवा के जितने मुद्दे हैं, उनमें कोई अतिशयोक्ति नहीं लगेगी; बल्कि वह भी कम लगेंगे।
जिस व्यक्ति के हृदय में माता-पिता का वास नहीं, देव का वास नहीं, गुरु का वास नहीं, धर्म का वास नहीं, उसकी आत्मा का कभी विकास नहीं हो सकता। जिसमें लौकिक सौंदर्य नहीं उसे लोकोत्तर सौंदर्य की भी प्राप्ति नहीं होती।
कई बार आपके संसार का विचार आता है तो हमें लगता है कि कैसा संसार है! कुदरत का कानून कैसा है कि जो माता-पिता पुत्र को जन्म देता है, वही माता-पिता के शरीर को जलाने का काम करता है। जो माता-पिता पुत्र को देह देते हैं वही पुत्र माता-पिता को दाह देता है। संसार कि यह कैसी विलक्षणता। इसके बावजूद आप में वैराग्य न जागे; यह कैसा आश्चर्य?