उम्र की तासीर समझकर व्यवहार करें:
आपके माता-पिता आपसे कुछ भी कहे, बुलाए तो तुरंत ‘जी’ बोलो। अपनी जगह पर बैठे रहकर नहीं, बल्कि उनके पास जाकर उनकी बात सुनो, समझो और उस पर विचार करके उन्हें अच्छा-अनुकूल प्रत्युत्तर दो! वह जो कहे उसे सुनकर उसे स्वीकार करो तथा स्वीकार करने के बारे में उनके ख्याल आए ऐसा व्यवहार करो। उनके द्वारा सौंपा गया तथा आपके द्वारा स्वीकार गया कार्य पूर्ण करके उन्हें इसके बारे में जानकारी दो। उन्हें स्वयं ही न पूछना पड़े कि, ‘बेटा! जा आया? काम करा आया? आपको ही सामने चलकर कहना चाहिए कि ‘जा आया हूं और काम कर आया हूं!’
सभा: माता-पिता का स्वभाव विचित्र हो तो?
विचित्र स्वभाव तथा विचित्र ह्रदयवाले के मन में ही ऐसा प्रश्न उठता है। आपके स्वभाव तथा हृदय की विचित्रता को दूर करो और सरल बनो तो खुद ही समझ में आ जाएगा।
कदाचित उनका स्वभाव विचित्र ही है यह मान लें! तो भी आपको तो कभी भी उनके लिए ऐसे शब्द प्रयोग नहीं करना चाहिए। उनका स्वभाव कैसा भी हो तो भी उनकी आराधना और पूजा ही करनी है। उनके लिए ‘विचित्र स्वभाव के हैं’ ऐसे विचार भी आपको आए तो यह आपकी अधमता है तथा ऐसा विचार करोगे तो आप में भी ऐसी विचित्रता आ जाए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। माता-पिता की आशातना से हमारे जीवन में विचित्रता न आए यह आश्चर्यजनक होगा। इतना सोचो कि आप कभी माता-पिता बनोगे कि नहीं? आप कभी बूढ़े होंगे कि नहीं? तब आपकी संताने आपको ‘विचित्र स्वभाव के’ कहेंगी तो?
2 महीने का बालक आपके कपड़े बिगाड़े तो आप अलग व्यवहार करते हो, वह यदि 3 दिन तक कपड़े ना बिगाड़े (शौच ना करें) तो भी आप चिंतित हो जाते हो। डॉक्टर को दिखाने ले जाते हो और शिकायत करते हो कि……. जब शरीर के अवयव कमजोर पड़ने पर आपके वृद्ध माता-पिता कपड़े बिगाड़े तो आप कैसा व्यवहार करते हो? 2 वर्ष का बालक एक ही बात बार-बार करें तो भी कैसा व्यवहार करते हो और वृद्ध माता-पिता ऐसा करें तो कैसा व्यवहार करते हो? याद रखो कि वृद्धावस्था में भी अवयव कमजोर पड़े, एक ही बात बार-बार करें, सबके सामने कहे, समझने में भी देर लगे, समझाने में भी देर लगे। यह उम्र की तासीर है, ऐसा समझकर उनके कहने का अर्थ समझोगे तो उसे स्वीकार भी कर सकोगे और उनसे अनुरूप-अनुकूल बर्ताव भी कर सकोगे।
यह सब आप कब सीखोगे महानुभाव? आपके माता-पिता क्या हमेशा जीवित रहने वाले हैं? अब दो-चार-पांच-दस वर्ष अथवा जिसकी जितनी आयु होगी वह पूर्ण करके चले जाने वाले हैं! फिर भी उनकी सेवा-भक्ति करने का लाभ कहां मिलने वाला है? किसका विनय करोगे?
‘हम कितना करें? कहां तक पहुंचे?’ यह सोचकर-बोलकर इस बात को उड़ा देने का प्रयास न करें! जल्द से जल्द इस बात को स्वीकार करके माता-पिता के मनोरथ पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए।
आपके वृद्ध अथवा बीमार माता-पिता जिस खिड़की के पास बैठे अथवा सोते हैं उस खिड़की से सुबह और शाम सूर्य का प्रकाश न आता हो। आप सुबह ऑफिस पर जाएं तथा शाम को या रात को घर आए। दोपहर के समय वहां से उनकी शय्या अथवा आसन पर धूप जाए, ताप लगे और वह गर्म हो रहे हो इसका शायद आपको पता भी नहीं चलता होगा। आप चले जाएं और आपके पीछे आपकी श्रीमतीजी उनका ध्यान ना रखें तो उनकी क्या हालत होती होगी? आपके सामने तो उनका काम करें किंतु पीछे क्या करती है इसका ध्यान रखते हो? माता-पिता से जानते हो? फिर उससे कहते हो? उसे माता-पिता की सेवा में जोड़ते हो? अथवा माता-पिता के सामने ही पत्नी से पूछते हो कि ‘तुझे कोई तकलीफ तो नहीं देते हैं न?’ ऐसा क्षुद्र व्यवहार तुम्हारा तो नहीं ही होना चाहिए!