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औचित्य माता पिता का – भाग 20

वाणी भी मीठी विन्रम चाहिए:

माता पिता के साथ जैसे काया से विनम्र व्यवहार करना है वैसे ही वाणी से भी विनम्र व्यव्हार करना है। उनकी आपके लिए जो इच्छा हो, उसमे कभी विकल्प न करें।वे जो कहें वह होना ही चाहिए । अधर्म की बात कहते हों तो बात अलग है , किन्तु उनकी बात पर अमल करने में व्यवहार में नुकसान होता भी दिखाई दे तो भी उनकी बात का उल्लंघन न करें। उनकी बात पर अमल करके उन्हें सन्तुष्ट करना चाहिए ।

हमने आज तक नहीं किया यूं भूतकाल की बातों का रोना नहीं रोना है। बल्कि आज बोध मिला है तो आज से भव्य भविष्य के निर्माण का शिलारोपण कर देना है ।

फिर मुझसे कहो कि आज से आपको क्या करना है?

आपको घर से बाहर कहीं जाना पड़े तो जाने से पहले माता पिता से पूछे बिना , उनकी आज्ञा व आशीर्वाद लिए बिना न जाएं , पहले अनुमति ले ली हो तो भी जाने के अवसर पर पुनः अनुमति लेनी चाहिए। बड़े इनकार करें तो वह काम कभी नहीं करना चाहिए ऐसा पहले के लोग मानते थे । एक बार तो हां कहा था और अब क्यों ना कहते है? ऐसा सवाल नही करना चाहिए। संयोग बदले हो सकते हैं जिनके बारे में तुम्हे पता न हो और वे जानते हों , ऐसा हो सकता है। सभी बातों के कारण बताने का आग्रह नहीं करना चाहिए ।

आप बाहर जाओ, जाकर आओ तो तुरंत पहले माता पिता को इसका समाचार दें। जो हुआ उसकी विस्तृत रिपोर्ट दें। अखबारों में जैसे बड़े अक्षरों में शीर्षक आते है फिर शॉर्टसमरी आती है और बाद में विस्तृत समाचार आता है वैसे ही तुम्हे घटित घटना का कमाकर लाए हो वह भी उनके चरणों में धर दें।

सभा: ऐसा तो जो बहुत उच्च कोटि के जीव हों वे ही कर सकते है ।

तो क्या आपको ऐसा उच्च कोटि का नहीं बनना है ?इसमें कोई मुश्किल है?

सभा: सण्डे को कहीं जाए तो वह भी उनसे कहें?

….. अर्थात आप ऐसी जगहों पर जाते है , जिनके बारे में कह नही सकते ? आपके माता पिता जानते न हों अथवा उनसे कहा न जा सके , ऐसी जगहों पर यदि आप जाते हो तो हद हो गई ! ओर वह भी आप उनसे कहे नहीं तो समय आने पर आपका हित वे कैसे के सकेंगे ?

औचित्य माता पिता का – भाग 19
September 17, 2018
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