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औचित्य माता पिता का – भाग 12

माता पिता एवं उनकी आज्ञा:

परमतारक परम गुरुदेव ने अजैनो से भरचक सभा में रामायण पर प्रवचन किए थे। अजैनो की सभा में जैन रामायण पढ़ना कितना मुश्किल काम है। यह तो जो पड़े वह जानता है। अजैन भड़क न जाए और जैन सिद्धांतों की अवमानना न हो यह ध्यान रखकर प्रवचन करना सरल काम नहीं है।

परम श्रद्धेय गुरुदेव ने यह कार्य सुयोग्य ढंग से कर दिखाया।

इनमें योग की पूर्वसेवा के गुणों की बातें करके रामायण के पात्रों की भूमिका समझाने के लिए योग की 4-4 भूमिकाओं का निरूपण किया है।
इस योग भूमिका स्वरूप जो बातें की गई है- इनमें माता-पिता का पूजक हो उसकी बात आती है। यहां त्रिसंध्यं माता-पिता के पैर छूता हो- ऐसी बात की गई है। त्रिसन्ध्य अर्थात तीनों संध्या के अवसर पर। सुबह उठने पर, दोपहर को भोजन के समय तथा शाम को सोने से पहले, तीनों समय माता-पिता के चरणों में शीश झुकाकर नमस्कार करने की बात की गई है। उनके आशीर्वाद लेकर ही काम करें। यह कार्य किए बिना वह किसी कार्य में आगे न बढ़े।

माता-पिता के पैर छूने में आपको क्या परेशानी होती है यह बताओ!

सभा: पैर छुए और फिर आज्ञा मानने को कहे तो…..

माता-पिता की आज्ञा तो मानने के लिए ही होती है न! पैर छूने के बाद माता-पिता जो कहे उसका पालन करना चाहिए तथा उनकी इच्छा पूर्ण करनी चाहिए।

सभा: धर्म विरोधी आज्ञा करें तो?

धर्मविरोधी हो तो अलग बात है। न जाने क्यों आपको धर्म के प्रति प्रेम उमड़ रहा है। किसी भी तरह आपको माता-पिता से पीछा छुड़वाना है। इसलिए इसके मुद्दे खोज निकालते हो। अगर वह धर्मविरोधी बातें कहे तो पैर छूकर कहना ‘यह शरीर आपने दिया है। छोटे से बड़ा आपने किया है। संस्कार आपने दिए हैं। आप कहे तो सिर कटाकर आपके चरणों में रख दूं, क्योंकि आप वह मांगने के हकदार है। आपका हर आदेश सिर-आंखों पर चढ़ाऊंगा, किंतु आप धर्मविरोधी कार्य करने के लिए कहेंगे तो मुझसे संभव नहीं होगा। आप इस भव के उपकारी है और इस भाव का हित करोगे; जब कि धर्म अनन्त भव का हित करने वाला है। उसे मैं नहीं छोडूंगा।

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