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धर्मो की भूमि भारत भूमि

भारत की अनोखी विशेषता उसकी धर्म भावना

भारत के धर्म नायको ने धर्म तीर्थो को स्थापित किया। धर्म के किनारे पर जहाँ दुखी जीवो को आश्वासन मिलता है तो सुखियो का अहंकार कम होता है। मानवो को जीवन निर्मल बनाने की प्रेरणा मिलती है। धर्म भावना दुनिया की अमर सम्पत्ति बन गयी है।

इसी धर्म भावना में तीर्थकरो द्वारा प्ररूपित धर्म ने एक अनोखी छाप छोड़ी है और वो छाप थी अहिंसा, करुणा समभाव की विश्व के सारे धर्मो से अलग सत्य मार्ग बताया था और वह था “god is never monopoly game in jainism” यहाँ तो हर आत्मा परमात्मा का आकार ले सकती थी। मानव को स्वयं के पुरुषार्थ सत्त्व के बल पर स्वयं का कल्याण कर सकता है। इस जिनशासन की भावनाओ को ग्रहण कर मानव के मन में करुणा, मैत्री, मानवता की लागनी के झरने फूटने लगे थे।

दुसरो की पीड़ा को वह खुद की समाजने लगे और जन कल्याण में निजकल्यान के दर्शन होने लगे।

तीर्थंकर परमात्मा के धर्म पताका को श्रमण वृंदो आचार्य भगवन्तो ने विश्व में लहराने का काम संभाला। जिनशासन को गुरु भगवंतों ने शोभायमान समृद्धवान बनाया। धर्म को निर्मल और सुरक्षित रखने का कर्तव्य श्रावक वर्ग ने गुरु भगवंत के मार्गदर्शन मे उठाया और जिनशासन की सर्वमंगल कारी कंकर को शंकर बनाने वाली जीव को शिव में तब्दील करने वाली परंपरा की अखंड धारा बहती रहती है। यह संसार की खूश नसीबी है।

परमात्मा के निर्वाण को प्रायः 2600 साल हो गए है। इन 2600 सालो में अनेक big परिवर्तन दुनिया में हुए है। इंसान का सम्पूर्ण जीवन change हो गया है। रथो, हाथी, घोडो पर सफल कार, बस , रेल और फ्लाइट पर आ गया है।

पर इस वीर प्रभु की परम्परा को अखंड रखने के लिए महाराजा महामंत्री क्षेष्ठीरत्नों ने तन, मन,धन के द्वारा समाज सेवा धर्म सेवा के कार्यो से स्वयं के जीवन को कृतार्थ किया है। इसी उज्जवल परम्परा में विक्रम संवत की 20वी और 21 सदि में। प्रतापी पुरुष हुए है। “शेठ श्री कस्तूर भाई लाल भाई ” गुजरात के क्षेष्ठ महाजन भारत के विख्यात उद्योगपति और जैन समाज के मुख्य अग्रणी है।

एक उ्द्योगपति के रूप में सतत् उनका जीवन प्रवुतिशील है। तो महाजन के रूपमें अनेक संख्याबद्ध सेवा कार्यो से उनका जीवन सुरभित हो रहा है।
सेठ कस्तुर भाई लाल भाई का जीवन क्या है
उनके पूर्वजों का उज्जवल संस्कार वारसा जो 10 पीढ़ियों से चला आ रहा है
इनके पूर्वज कैसे थे क्या संस्कार उन्होने दिये थे उनकी वंश परम्परा पर क्यो देश को नाज है ??

ईन सारे प्रश्नो का जवाब अगले दिन ।

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