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इक्षुरस अभिषेक जिज्ञासा समाधान

जिज्ञासा:
अक्षय तृतीया के दिन प्रभु श्री ऋषभदेव स्वामीजी को गन्ने के रस
से अभिषेक करते है उसका क्या महत्व.? ये अभिषेक सही है?

समाधान:
इस विषय का समाधान प्राप्त करने से पहले अभिषेक सम्बंधित
भाववर्धक ज्ञान प्राप्त करते है-
अभिषेक विधि के मूल ग्रंथो में
विविध नदी के जल,
तीर्थ की शुद्ध स्थान की माटी,
इलायची, लविंग, ब्राह्मी, तुलसी आदि उत्तम औषधियों के रस चूर्ण,
कुमकुम,
सुवर्ण रजत भस्म,
केसर,
कस्तूरी,
घी, दूध, दही, चन्दन आदि अनेक शुद्ध एवं विशिष्ट द्रव्यों से परमात्मा के अभिषेक का विधान है..!
अपनी शक्ति हो एवं शुद्ध द्रव्य प्राप्ति का निर्दोष स्रोत हो तो व्यवस्था
अनुसार इन द्रव्यों से परमात्मा का अभिषेक कर सकते है।

श्रावक अभिषेक के लिए शुद्ध एवं अधिक से अधिक ज्यादा द्रव्योकी प्राप्ति के उपाय में प्रयत्नशील रहता है…
शुद्धता को अनदेखा करके द्रव्यों को इकठ्ठा करना श्रावक कभी नहीं सोचता…
किसी संजोग विशेष में द्रव्य की कमी चले लेकिन सुद्धता की नहीं.!
विशिष्ट अनुष्ठान,
प्रतिष्ठा,
अंजनशलाका,
शांतिस्नात्र,
अठारह अभिषेक आदि अवसर इन औषधियों से परमात्मा का अभिषेक होता है.!

अठारह अभिषेक आदि विधानों में परंपरा के ग्रंथो में
उल्लेखित 18 औषधियों से अभिषेक होता है

भक्तामर, कल्याणमंदिर, शक्रस्तव आदि स्तोत्रो के पाठ के साथ विशिष्ट द्रव्यों से परमात्मा का अभिषेक कर सकते है.!

वर्तमान काल में परंपरा है की पंचामृत से अभिषेक का व्यवहार है लेकिन उक्त विशिष्ट शुद्ध सुगंधि औषधि,द्रव्यों से भी नित्य अभिषेक कर सकते है अगर शक्ति और व्यवस्था हो तो..

“श्री आदिनाथ प्रभु का इक्षुरस से अभिषेक”
श्री आदिनाथजी के 400 दिन के उपवास व पारणा की स्मृति में अक्षय तृतिया के दिन इक्षुरस से अभिषेक होता है..!

अभिषेक विधि के ग्रंथो में उक्त द्रव्यों के साथ ईक्षु रस का भी विधान है,
इस लिए ईक्षु रस से परमात्मा का अभिषेक करने में कोई शंका रखनी नहीं चाहिए..
भक्त अपने नाथ की भक्ति में शास्त्रो में निषेध न हो ऐसे अभिषेक योग्य उच्च द्रव्यों का उपयोग परमात्मा के अभिषेक में कर सकते है..!
लेकिन भक्ति के साथ विवेक को भी जागृत रखना चाहिए।
जैन धर्म के मूल जयणा का ख़याल अवश्य रखना चाहिये।
ईक्षु रस से अभिषेक करो तो उस रास के कारण चीटींया, मंकोडे,माखी इत्यादि उत्पन्न न हो और उसकी विराधना न हो ऐसी शुद्ध व्यवस्था करनी चाहिए, मार्ग का लोप न करें, आसातना को दूर करे।

वर्तमान में इस काल के प्रथम साधु का प्रथम पारणा इस विशिष्ट प्रसंग की स्मृति में
मात्र अक्षय तृतिया के दिन आदिनाथजी का ही इक्षुरस से अभिषेक करते है
लेकिन ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए की इक्षुरस से सिर्फ आदिनाथजी का
ही अभिषेक कर सकते है।
ऐसा नहीं,जयणा पूर्वक उक्त द्रव्यों से किसी भी
अरिहंत प्रभु का किसी भी दिन अभिषेक कर सकते है।।

इच्छापूर्ति वॄक्ष
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