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दिल और दिलावरी

“टू बी रीच $ टू फील रीच”

दुनिया मे पैसेवालो की, धनवानो की, दौलतमंदो की कोई कमी नही है। परंतु कई सारे धनवानो का अस्तित्व महल की चार दिवारो मे समाप्त हो जाता है। दो सहेली थी। दोनो ने साथ मे पढाई करी थी। साथ मे बडी हुई थी। दोनो की शादी हो गई थी। एक की धानाठ्य घर मे शादी हुई थी तो एक की मध्यमवर्गी पर सुखी घर मे हुई थी।

दोनो कुछ समय बाद मिली। मध्यमवर्ग मे जिसकी शादी हुई थी उसने कहाँ- मै तो सुखी हूँ, खुश हूँ। पैसे वाले घर मे जिसकी शादी हुई थी उसने कहाँ- मै तो सोने के पिन्जरे मे कैद हूँ।

सोने के पिन्जरे से पित्तल का जंगल अच्छा है। दिलावरी बिना का दिल वह शरीर के अंग के सिवाय और कुछ भी नही है। इसलिए महानायक सिकंदर की बात याद रखने जैसी है- ” जब भी मेरा जनाजा निकले तब मेरे हाथ बाहर रखना ताकि दुनिया को पता चले कि सिकंदर जैसा सिकंदर भी खाली हाथ गया था”

विश्व के अमीरो की सुचि मे जिसका नाम बहुत ऊपर है ऐसे स्टील सम्रार्ट लक्ष्मी मित्तल ने एक बार कहाँ था कि – जीने के लिए सम्पति की एक मर्यादा है। तुम्हारे पास अगर अति सम्पति है तो फिर उसकी कोई बहुत किमत नही होती है।

स्कंद पुराण मे एक बात है- सम्पति वह पानी जैसी है। परंतु पानी देनेवाले बादल ऊपर है पानी संग्रह करने वाला समुद्र नीचे है। बादल के पास दिलावरता है तो समुद्र के पास संग्रहखोर है। अब इन्सान को ही नक्की करना है कि उसे बादल बनना है या समुद्र।

धन किस तरह से प्राप्त करता है?। उसे नही पर धन कैसे खर्च करता है? उससे धनवान को मापा ता है। अयोग्य तरह से धन खोना वह गुनाह है। परंतु अयोग्य तरह से धन प्राप्त करना बडा गुनाह है। परंतु अयोग्य रूप से धन खर्च करना सबसे बडा गुनाह है।

सम्पति मिलना वह प्रभु की कृपा है। परंतु सम्पति योग्य रूप हे खर्च करने की कला वह प्रभु का आशिर्वाद है। जिसके पास सिर्फ पैसे है उससे गरीब दुनिया मे और कोई नही है ।।

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