वफादारी बहुत मुल्यवान है। जो भी वफादारी को निभाता है उसे इसका बहुत ज्यादा दाम चुकाना पड़ता है। वफादारी मात्र मन का शुद्ध भाव ही नही माँगती है यह दुसरे बहुत सारे बलिदान को माँगती है।
वफादारी समय माँगती है, निश्चय माँगती है, विश्वास माँगती है। वफादारी शक्ति और भक्ति माँगती है। जिसमे निष्ठा होती है वही वफादारी कर सकता है। जिसमे प्रतिष्ठा होती है वह वफादारी को निभा सकता है।
वफादारी का श्रीगणेश हमेशा खुद से होता है। जो भी इन्सान वफादार बनना चाहता है तो उसे सबसे पहले खुद के साथ वफादार रहना सिखाना चाहिए। जो इन्सान स्वयं के साथ गद्दारी करता है, खुद ही खुद को ठगने की कोशिश करता है वह कभी भी किसी के साथ वफादार नही रह सकता है। इन्सान खुद की आँखो मे गिर जाय एसी यह बात है।
हर इन्सान मे दो मानव जीवन जीते है- एक बडा अच्छा होता है, दुसरा खराब । अच्छा मानव हमेशा उसे वफादारी के प्रति प्रोत्साहित करता है। तो खराब मानव हमेशा उसके गुणो को डेमेज करने की फिराक मे रहता है। और जब इन्सान खुद के अन्दर रहे खराब मानव की बातो मे आ जाता है तो वह अपने अन्दर रहे सज्जन मानव के साथ गद्दारी करने लगता है। और जब वह ऐसा करे तो कभी भी उसका विश्वास नही करना चाहिए।
जो इन्सान खुद के प्रति वफादार नही रहता है वह इन्सान हमेशा दुसरो के प्रति भी वफादार नही रह सकता है। वह गद्दारी ही करता है। वह अन्य को बेवकूफ बनाने मे प्रयत्नशील रहता है। ऐसे मानव का कभी भी विश्वास नही करना चाहिए। इन पर विश्वास करना यानि की खुद के हाथो से खुद के पैरो पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
सबसे पहले मानव को स्वंय के प्रति वफादार रहना चाहिए। खुद का दिल ना कहता है तो फिर वह कार्य नही करना। किसी को भी ठगने की कोशिश नही करनी चाहिए। याद रखना- ” जो खुद को वफादार नही, वह किसी को वफादार नही रह सकता है” ।
वफादारी खुद्दारी है। वफादारी फुल की क्यारी है। इसी क्यारी मे सुख और शांति के पौधे उगते है। और इसकी सुगंध जीवन को सुगंधित कर देती है ।।