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गुरु परम्परा

गुरू एक तेज हे जिनके आते ही सारे संशय के अंधकार ख़तम हो जाते हे।

गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हे

गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे।

गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो सँसार से पार हो जाते हे।

गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे।

गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे। हमारे जीवन में आनंद भर देते हे

गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरकने लगता हे।

गुरू वो अमृत हे जिसे पास जा क्र कोई कभी प्यासा नही प्यासा नही रहता।

गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती हे।

गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेष रूप मे मिलती हे और कुछ पाकर भी समझ नही पाते।

गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।

गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे।

गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही।

गुरु वो शक्ति है जो हमे परमात्मा से मिला देती है

नारी तू नारायणी तूझे शत् शत् प्रणाम
March 14, 2016
टीवी की विज्ञापित को छोड़कर जैनशासन की पब्लिसिटी करे
March 14, 2016

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