जहाँ एकता है वहाँ सफलता है। एकता से हर कार्य संभव होता है। पर जब साथ में मिल कर काम करने वाले साथियो में श्रेय और मान सम्मान के लिये मुकाबला शुरू हो जाता है।
बाल अवस्ता में सुनी हुई एक कहानी याद आ रही है।
आप लोग भी शायद उस कहानी को जानते है। शिकारी द्वारा बिछाई हुई जाल में एक कबुतर का समुह फस जाता है। सारे पक्षी एक साथ बल लगाकर उड़ जाते है। और एकता की जीत होती है। अब आगे भी सुनो
वो कबुतर का समूह आकाश में उडाता है और शिकारी उसके पीछे नीचे दोडता है। लोग उसे कहते है भाई अब रहने दे पक्षी जाल ले कर के उड़ गये है। अब तुम उनको पकड़ नहीं सकते हो कहा तक दौड़ोगे। शिकारी कहता है की आपकी बात तो सही है पर जल्दी मुझे मेरे शिकार वापिस मिलेगे। यह बात सुनते ही लोग आश्चर्य चकित हो गये और बोले की तुम ऐसा कैसे कह सकते हो
शिकारी ने जवाब दिया की यह सारे पक्षी जाल के साथ उड़े है। यह उनकी एकता थी पर ये एकता ज्यादा समय तक टीक नही सकती और इन सारे पक्षियों के बीच संगर्ष होगा और उसका फायदा मुझे मिलेगा
और सही में ऐसा ही हुआ । उड़ते-उड़ते कबुतर थक गये और एक दूसरे पे दबाब बनाने लगे की ज्यादा बल मैंने लगाया। शिकारी से बचाने में मेरी भूमिका ही मुख़्य रही और मेरे कारण ही शिकारी से बच पाये। झगडने लगे और संघर्ष की शुरूवात हो गयी।
मेरे कारण ही सबको जीवन मिला है। जाल उडाने का plan मेरा ही था। इस तरह संगर्ष चरम पर पहुंचा। श्रेय लेने की दौड़ का परिणाम यह आया की उनकी एकता टूट गयी। और सब यह नीचे गिर गये शिकारी के हाथ में आ गये।
संघर्ष ने एकता की ताकत को तोड़ दिया श्रेय लेने की वृत्ती ने एकता को खंडित कर दिया।
” सफलता को क्षण भर में निष्फलता में बदल दिया”
हर कार्य में सफलता टिकाये रखना हो तो जीत का श्रय सबको दो एकता को बनाए रखो।
” हम कई रिश्तो को टूटने से बचा सकते है
अपनी सोच में छोटा सा बदलाव कर के
की सामने वाला गलत नहीं है
सिर्फ हमारी उम्मीद से थोडा अलग है।”