एक डॉक्टर अपने परिवार के साथ एक आश्रम में गए। वहाँ पर उसने गुरुदेव से कहा कि मुझे शांति चाहिए। जब गुरु ने उससे पूछा क्या काम है तो उसने कहा कि मै एक सर्जन हूं नर्सिग होम का मालिक हूं। उसके पास धन था, दौलत भी थी , गाड़ी बंगला शौहरत भी थी। एक प्रेमिका जैसी पत्नी और खिलोने जैसे दो प्यारे बच्चे भी थे। उसके पास शांति नही थी चैन नही था और ना ही संतोष था।।
मेरे पास समृद्धि है पर मै सुखी नही हूँ। मन की शांति के लिए भटक रहा हूँ। किसी से आपका रिफरेन्स मिला है फिर मै यहाँ आया हूँ।
संत ने उसके ऊपर नज़र डाली और उसके दिमाग को पड लिया। इंसान तो सात्विक लग रहा था। वास्तविकता में उसे शांति की झंखना भी थी।
संत ने उसे वहां से उठाया और आबू रोड ले गए। उनकी गाड़ी को वही रखा। दूसरे भक्त की गाड़ी में बिठाया। आबू रोड पर एक कपडे की दुकान से पुराने मेले धुले कपडे पहनाये। उसके ब्रांडेड कपडे खुलवाये। वह अपनी शक्ल देखकर रोना भी भूल गया था।
डॉक्टर ने उन कपड़ो को पहनकर उन संत से पूछा इससे क्या होगा।
उन्होंने कहा कि धीरे धीरे समझ आ जायेगा। इन कपड़ो में डॉक्टर के तरीके का गौरव, उनकी आभा, उनके चेहरे का तेज सब कुछ गायब हो गया था।
संत ने कहाँ की हम जा रहे है और आप आश्रम आ जाना। मुझे पता है आपका पर्स पत्नी के पास है। तुम्हे घड़ी चेन बेचना नही है। तुम्हारे पास दो घण्टे का समय है ,तुम आ जाना नही तो मै तुम्हारी गाडी, पत्नी को भेज दूंगा। अहमदाबाद का रास्ता पकड़ लेना शांति का रास्ता तुम जैसे प्रवासियों के लिए नही है। संत गुरु की तरह शिष्य की कसौटी कर रहे थे। डॉक्टर के सामने देखे बिना वह सडसड़ाट गाड़ी में बैठकर चल दिए।
दुकानदार ने भी इशारा कर दिया और वह स्पष्ट था। यहाँ से हठो। भिखारी की तरह क्यों खड़े हो। संत किसी से उधर मांगने का भी ना बोल गए थे। और अचानक से एक विचार आया की संत ने उधार मांगने का मन किया था पर मांगना मना नहीं किया था। पर मांगना तो भीख कहलाती है तो क्या करना अब मांगना या नही?? या फिर भूखे पेट पद यात्रा शुरू कर देनी?? पेट खाली था , उसने विद्रोह किया। पेट को तकलीफ देने के बजाये हाथो को तकलीफ देना बेहतर है। भीख तो भीख यहाँ पे कौन पहचानेगा। उसने भीख मांगना शुरू किया। लोगो का तिरस्कार सहा। आज डॉक्टर को समझ आया की भीख मांगना भी कितनी मुश्किल बात है। उसने शर्म के साथ छुटे ले लिए। और एक एक से भीख मांगना शुरू किया।
एक सज्जन ने बीस रूपए दिए और फिर वो आश्रम पहुंचा। संत ने पूछा की कुछ फर्क लगा??
डॉ. ने कहाँ हा।। मन में से अहंकार निकल गया। पैसे तो डिग्री के आभारी है चमक वह दमक की आभारी है। मेरी पेहचान कपडे की आभारी है। मेरी पहचान में से सब निकल दूँ तो कोई एक रूपया भी देता नही है।
छोड़ दे सब ये मोह माया। तेरी दशा जो एक घण्टे के लिए थी वैसी दशा इस देश के 80% लोगो की है।
अब बस गरीबो की सारवार करना चालू कर उनके तन को शांति देगा तो तेरे मन को स्वतः शांति मिल जायेगी।।
और डॉक्टर इस वाक्य को सार्थक कर दिया। बहुत बड़ा हॉस्पिटल सेवा के रूप में चालू कर दिया है।।