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पैसे बिना भी सुख प्राप्त करो

” नही पुजेगी शान बान अब धनबल पर धनवान की पुजा होगी अब धरती पर मेहनतकश इन्सान की”
हिन्दी जगत के प्रख्यात कवि मदन मोहन परिहार की यह पंक्तिया परिश्रम की महिमा बताती है। मानव को जीवन मे मात्र धन का ही महत्व नही रखना चाहिए। भूतकाल से अभी तक लगातार जिन्होंने परिश्रम किया है वही प्रतिष्टित और वंदनीय गिनाया है। शान, बान, प्रतिष्टिता, वंश, कुल और धन दौलत की पुजा अब और नही होगी परन्तु जो मनुष्य सतत् मेहनत करेगा उसकी ही पुजा होगी। आप भी परिश्रम करके पैसा के बिना सुख प्राप्त कर सकते है। मात्र पैसे से ही सुख प्राप्त होता है यह हमारी सोच है। धन प्राप्ति से आप भौतिक सुख सुविधा को इकट्ठा कर सकते हो परन्तु मानसिक शांति प्राप्त नही कर सकते हो। सच्चा सुख तो संतोष मे है। सच्चा सुख तो श्रम मे है।
“सादा जीवन उच्च विचार ” इसी मे सुख का समावेश है। अगर आपको सुखी होना है तो आप गुणो से ही सुखी सकते हो ।
संसार मे अधिकतर ऐसा ही देखने को मिलता है कि धनवान मानव मानसिक और शारीरिक कारणो से दुःखी है। और निर्धन या मध्यम वर्गी मानव स्वयं के गुणो द्वारा पैसो के बिना ही सुखी है।
सुख किसमे समाहित है? इस विषय पर गंभीरता से विचार करो, मंथन करो, शोध करो, अवलोकन करो और सच्चे सुख को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करो।
ऐसे कई सारे महानुभाव हुए है जो बिना पैसे के अनुकरण जीवन जी कर के महान बन गए है। विश्व मे रूपये बिना भी श्रीमंताइ भोगी जा सकती है। कितनी बार पैसे इन्सान को जड, स्नेह हिन कठोर बना देता है। ऐसे धनवान मानव संघ, राज्य, देश को कुछ भी देकर जाते नही। मात्र पैसा, मात्र धन, मात्र संपत्ति मानव को पशु समान बना देती है। हमको सही मे अगर सुखी होना है तो, लोकप्रिय होना हो तो धन को आवश्यकता से ज्यादा महत्व मत देना। सुखी होने के लिए सशक्त शरीर, आशा, आनंदी स्वभाव, प्रेम से युक्त ह्दय, सस्नेहता, पवित्र अतः करण एसे अनेक गुण ग्रहण करना अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य है। आप सद् गुणो से विकसित करके पैसा के बिना ही सुख प्राप्त कर सकते है ।
जिनशासन के महापुरुषो ने कहा पर भी मानव जीवन मे धन को महत्व नही दिया। हमे अगर इस संसार को पार पाना हो तो हमे जीवन मे संतोष गुण को अपनाना बहुत जरूरी है। इसी गुण से जीवन आन्नदित प्रफुलित बन सकता है। विनय विजय जी ममहाराजा ने शांत सुधारस मे बडी अद्भुत बात बताई है। परः प्रविष्टः कुरुते विनाशम्। हम जभी पर द्रव्य मे प्रवेश करते है स्वतः का विनाश करते है ।
पैसे ही सर्वस्व है और इसकी वृद्धि से ही सुख की प्राप्ति होगी इस प्रकार की मृगजल वृत्ति नही रखनी चाहिए। धन से मानव का मन कभी भी भरता नही। संतोष से ही मानव का मन तृप्त होता है। इसलिए संतोषी नर नारी बनो। इस द्रव्य के पिछे मत दौडो। मात्र द्रव्य मे ही सारे सुख समाये हुए है ऐसा कभी भी मत मनाना। धन सुख जीवन मे कभी भी प्रमुख स्थान पर नही है । प्रमुख स्थान पर गुण है था और रहेगा ।
सुखी होने के लिए स्वार्थ को त्यागो। स्नेही बनो, स्वंय की भुल को स्वीकारो। पुरूषार्थ करो । हिम्मत, श्रद्धा और एक लक्ष्य रखो। अडचणो का मुकाबला करो और आगे आगे बढ़ाते रहो। ऐसा करोगे तो द्रव्य की कभी आवश्यकता नही पडेगी।
हितोपदेश मे लिखा है –
” धन से मात्र दो ही वस्तु प्राप्त होती है –
भय और दुःख
एकट्टा धन किसी काम का नही उल्टा वह महाअन्धता को उत्पन्न करता है ।।

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