बात पहले की है । एक बार हरिलाल नामक एक किसान आया और मुझसे पूछने लगा-‘तुम सागरमलजी के लड़के हो क्या?’ मेरे ‘हाँ’ कहने पर वह सौ रुपये निकल कर देंने लगा और बोला-‘बहुत दिन हुए मै तुम्हारे पिताजी से एक सौ उधार ले गया था।उस समय तुम बहुत छोटे थे । अबतक मैं वे रुपये नही लौटा सका।अब मेरे पास रुपये जुटे हैं, तब ले कर आया हूँ। में उसकी ओर देखता रह गया।तब उसने फिर कहा-: ‘मैं तुम्हारे पैर पकड़ता हु। मुझे कर्ज से मुक्त कर दो। मैं ब्याज नही दे सकूँगा । किसी तरह बड़ी कठिनतासे रुपये इखटे कर पाया हूँ । मुझे इस कर्ज का बड़ा भय है, बाबू!’यों करकर वह बार -बार हाथ -पैर जोड़ने लगा।
मेने सोचा कितना ईमानदार और कर्ज से डरनेवाला हैं यह बूढ़ा किसान । बड़े- बड़े लोग भी आज क़ानूनसे बचकर रुपये हजम कर जाते हैं । मैंने चाचाजी से बिना पूछे ही रुपये ले लिए तथा उससे कह दिया-‘तुम कर्ज से मुक्त हो गये ।’ वह प्रसन्न होकर चला गया।
ये रुपये लगभग पचीस वर्ष पहलेके थे । हमारे पास कोई हिसाब नही था। यहाँतक की चाचा जी को भी याद नही था।
किसान की ईमानदारी को देखकर भगवान से यही प्राथना की जाती है कि हम सब को भगवान ऐसी ही सद्बुद्धि दें।