सभी देवियो को नमस्कार । आज का घर गृहस्थी परिवार का विषय कुछ हटकर हैं । हम सभी के बालक बालिकाये एक उम्र के बाद किशोरावस्था की और आते हैं।एक माँ होने के नाते आप सभी की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती हैं । क्योंकि पिता का अक्सर समय ऑफिस और व्यापार मे चला जाता हैं ।
किशोरावस्था न केवल बच्चों के लिए, बल्कि उनके पेरेंट्स के लिए भी बड़ी ही मुश्किल अवस्था होती है। मां होने के नाते आपके लिए यह जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि अपने किशोर बच्चे से किस तरह का बर्ताव किया जाए। इसके जरूरी है कि उसकी मानसिकता को समझें।
इस किशोरवस्था मे बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करे, आज इसी पर मै हंस जैन घर गृहस्थी परिवार ग्रुप मे चर्चा कर रहा हूँ
आपके बच्चों के दोस्त कौन हैं
कुछ मांओं की यह शिकायत होती है कि उनका किशोर बच्चा अपने आप कोई फैसला नहीं ले पाता। वह वैसा ही करता है, जैसे उसके दोस्त करते हैं। असल में इस उम्र में बच्चे अपने दोस्तों से इतने ज्यादा प्रभावित होते हैं कि पेरेंट्स इसे महसूस ही नहीं कर पाते। एक किशोर बच्चे की पहचान अक्सर उसके दोस्तों से जुड़ी होती है। दोस्तों की नापसंदगी या रिजेक्शन उन्हें बेहद नागवार गुजरता है। बच्चे हमेशा यही देखते हैं कि दूसरे क्या कर रहे हैं, क्या पहन रहे हैं, क्या सोच रहे हैं। इसलिए अपने किशोर बच्चों से की मनोवस्था समझें। समय समय पर यह
ध्यान रखे की बच्चों के दोस्त कौन हैं, और उनकी मनोवृति किस प्रकार की
हैं । किशोरवस्था ही बच्चों के बिगड़ने की सबसे खतरनाक उम्र होती हैं ।
किसी दिन बच्चों के दोस्तों को घर पर बुलाये और आप देखे की उनका दोस्त का व्यवहार किस लायक हैं ।बच्चे किसकी संगत में रहते हैं इसका प्रभाव उस पर होकर ही रहेगा। मित्रों के विचारों के तरंग धीरे धीरे
उसे रंगने लगते हैं ।सतर्क रहें । तदनुसार व्यवहार करे ।
अकेले मै गलत विचार न सोचे
अक्सर माँ के मन मे एक विचार आता
प ता नहीं सारा दिन अकेला बैठे-बैठे क्या करता है? एक टीनेजर की मां के मन में यही सवाल अक्सर घूमता रहता है। इस उम्र के बच्चे अक्सर डिनर साथ नहीं करते, पारिवारिक समारोहों में भी उन्हें जाना पसंद नहीं होता और रिश्तेदारों से भी मिलने से कतराते हैं। यह भी हो सकता है कि वह कमरा बंद करके तेज आवाज में संगीत सुनते रहें या फिर दोस्तों से चैटिंग करते रहें। टीनेज में ये सब सामान्य बातें हैं। ऐसा नहीं है कि ये सब कुछ करने वाले बच्चे एंटी-सोशल या विद्रोही बन रहे हैं। आप उन्हें स्पेस दें और उन्हें समझने की कोशिश करें, उन पर भरोसा करें। आपके ऐसा करने पर वे मन ही मन आपके मुरीद हो जाएंगे। उन्हें वक्त दें, ताकि वे यह समझ सकें कि उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं। यह उनके व्यक्तित्व के निर्माण के लिए बहुत जरूरी है।कभी हो सके तो उनके दोस्तों के साथ बाते कर पता करे की बच्चों को क्या ज्यादा पसन्द आता हैं ।
बदलता परिवेश और उम्र का अंतर
आप इस बात को समझने की कोशिश करें कि जब आप टीनेजर थीं, तब में और अब में क्या अंतर है। आप पाएंगी कि चीजें काफी हद तक बदल गई हैं। ऐसे में आप कूल मॉम बनकर अपने बच्चों को हैरान करें। हर चीज को नियमों और सख्त अनुशासन में न बांधें। कभी-कभी इन नियमों में थोड़ी सी ढील भी दें। इस उम्र में एक बच्चे को सबसे ज्यादा जरूरत दोस्त की होती है, जिससे वह अपनी सारी बातें बेहिचक कह सके और उसको बात-बात में जज न करे। आप उसका दोस्त बनने की कोशिश करें और समय-समय पर यह बताती रहें कि सही और गलत में फर्क क्या है। उसके साथ बैठ कर कुछ मोबाइल एप्स सीखें या कम्प्यूटर भी सीखने की कोशिश करें। आपकी उससे संवाद बढ़ाने की यह कोशिश दोनों के बीच के तनाव और जनरेशन गैप को कम करेगी। बच्चों को यदि प्यार से डांटा जाए तो समझ जायेगे ।
मोबाइल एक सीमा तक जरूरी
मेरे दोस्त की बेटी हर वक्त अपने फोन में उलझी रहती है। मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं है। जब हमें फोन दिया गया था तो हम उसका इस्तेमाल परिवार से जुड़े रहने के लिए करते थे। पेरेंट्स की बच्चों को लेकर यह शिकायत बहुत ही आम है। यह आज की पीढ़ी है, जिसके लिए व्हाट्स एप, फेसबुक, इंस्टाग्राम बहुत जरूरी चीजों में शामिल हैं। यह सही है कि किसी भी चीज की लत बहुत ही खराब बात है। अगर आपका टीनेज बच्चा फोन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है तो इसके पीछे के कारण का पता लगाइए, लेकिन उसे डांटिए मत। आप छोटे-छोटे नियम लागू करें, जैसे खाना खाते वक्त मोबाइल बंद रहेगा, घर में किसी अहम बातचीत में वह शामिल है या फिर पढ़ते वक्त भी, मोबाइल का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं