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“ध्यान”

ध्यान से क्या नही मिलता है?
सब कुछ मिलता है।
इससे कषाय तो जाते ही है , साथ ही साथ केवलज्ञान भी प्राप्त होता है। परंतु यह तभी प्राप्त हो सकता है जब यह ध्यान आर्त-रौद्र के स्वरूप में नही हो तो। क्योंकि ध्यान यानी की एक पदार्थ से एकाकार हुआ चित!
ध्यान शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी हो सकता है। अगर ध्यान शुभ है तो आत्मिक उथान कर देगा और अगर अशुभ है तो आत्मिक पतन कर देगा।
अगर ये ध्यान शुभ होगा तो जीवन में सुख शांति का विस्तारीकरण कर देगा और अगर अशुभ होगा तो दुःख- अशांति से जीवन को तहस नहस कर देगा ।
अगर ध्यान शुभ होगा तो भयंकर चिकने कर्मों को तोड़ कर रख देगा। और यह अशुभ है तो भयंकर कर्मों की निकाचीत कर आत्मा से चिपका देगा।
अगर यह शुभ है तो हमारे गुणस्थानक को ऊपर लाकर रख देगा और अगर अशुभ है तो हमको पहले गुणस्थानक पर भी फैंक सकता है।
अगर यह ध्यान शुभ है तो हमें पंचमी गति दायक नी:संदेह होता है। और यह अशुभ है तो दुर्गति की परमपरा का अचूक वाहक बन जाता है।
तो बस हम शुक्लध्यान और धर्मध्यान धारक बने। और यह दोनो ध्यान तभी मिलेंगे जब हम
पौगलीक आनंद को छोड़ेंगे।
इस ध्यान को तभी पाएँगे जब इष्ट का वियोग सहन करेंगे।
इनका तभी अनुभव होगा जब अनिष्ट का सहयोग जुड़ेगा।
यह तभी फलदायी होगे जब प्रभु आज्ञा का पालन होगा ।
अब फ़ैसला आपको करना है की शुभ ध्यान से तरना है या अशुभ ध्यान से डूबना है। इसका निर्णय आपके हाथ में है। आपको आत्मा को कहा पर लेकर जाना है।।

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