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हिम्मत से टूटे हुए का मित्र कौन है?

एक युवक छोटा सा धंधा करके खुद की आजीविका चलाता था। व्यापर में भंयकर मंदि का वातावरण छा गया जिसके कारण धंधा एकदम ठंडा हो गया। दिवसे- दिवसे युवक हताशा की खाई में उतरता गया। वह life से इतना हताश हो गया की आत्महत्या करने के विचार तक उसे आने लगे।

इस तरह की विचित्र मानसिक परिस्थिति से प्रसार होन वालेे उस नौजवान एक और जोरदार फटका पड़ा और अचानक से उसके पिता की मृत्यु हो गई। घर की संपूर्ण जवाबदारी उसके सिर पर आ गई। पिता की मृत्यु के बाद पता चला की पिताजी ने एक बहुत बड़ी लॉन ले रखी थी। यह जानते ही वह युवान पूरा टूट गया। क्या करना कैसे करना यह कुछ भी उसे समझ नहीं आ रहा था।

पिता की सारी क्रियाओं को निपटाने के बाद एक दिन पिता के रूम में कितने ही दिन से बंध अलमारी को खोला। उस अलमारी में दूसरा कुछ तो नहीं मिला परन्तु रेशम के कपडे में लपेटा हुआ एक ग्रन्थ मिला। युवक ने ग्रन्थ पर से कपड़े को हटाया तो अंदर से एक पुस्तक मिली। पुस्तक को खोलते ही पिता के अक्षरों को देखकर युवक समझ गया था कि वह पिता के हाथ से लिखा ग्रन्थ है। उसका प्रथम पेज खोलकर पढ़ने की शरुआत करी। मेरे बाप दादा की बहुत बढ़ी सम्पति जतन कर संभाल राखी है। इस घर के अग्नि कोने से तीन हाथ खोदकर सोने के भरे हुए पाँच गड़े संभालाकार रखे है। मुश्किल समय में यह पाँच गड़े बहुत काम आयेंगे। परन्तु मुश्किल को पार करने के लिए खुदसे बने तो सारे प्रयास करना उसके बाद अगर जरुरत पड़े तो ही इन घडो को खोदकर बहार निकालना। इस बात ने युवक के अंदर नये प्राणों का संचार कर दिया। वह सारी हताशा का त्याग करके पुनः काम पर लग गया। बहूत बड़ी सम्पति उसके पास है इसी विश्वास से वह बड़े साहस करते गया और आगे बढ़ता गया। समग्र कर्ज़ भी उसने चूका दिया और उसका धंधा भी बहुत विकसित हो गया उसे घड़े निकलने कि जरुरत भी नहीं पड़ी।

हमारे सारे धर्म ग्रंन्थ भी पिताजी की पुस्तक जैसे ही है। यह तो बस मूर्च्छित इंसान में प्राण डालने का काम ही करते है।

यह मानव के जीवन को दिशा देते है।

” श्रद्धा का हो विषय तो फिर सबूत की क्या जरुरत? ”
कुरान में कंही पर भी पयगंबर की स्याही नहीं है। “

मेरी इच्छा से प्रभु इच्छा ज़्यादा अच्छी है
December 13, 2016
इन्सान पैसो से नही स्वाभिमान से महान बनता है
December 19, 2016

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