गुस्सा एक ऐसा अपराधी है जो जीवन मे विवेक को नष्ट कर देता है।
गुस्सा और विवेक के बीच मे मात्र एक ही दरवाजा है। जब भी जीवन मे गुस्से का दरवाजा खुलता है तो विवेक का दरवाजा बंद हो जाता है। गुस्सा आते ही वह सर्व प्रथम बुद्धि को खा जाता है।
क्रोध वह तुफान जैसा है। तुफान की प्रकृति ही विनाश की सर्जक है। दुनिया मे प्रकृतिक तुफान आये या मानवीय तुफान आये यह जब भी आता है सृष्टि का विनाश करता है। क्रोध भी एक तुफान है। यह आता है तो विवेक का विनाश करता है। इन्सान के जीवन मे कितने भी सद्गुण हो परंतु वह अपने खुद के क्रोध को नियंत्रित करना नही जानता तो वह अपने हाथो से स्वयं के सद्गुणो को नष्ट कर देता है। क्रोध जब आता है तो वह प्रथम क्षण मे ही ज्ञान का नाश करता है। तो उसके ज्ञान का कुछ भी मुल्य नही रहता है।यानि खुद का ज्ञान अवमूल्यन करता है।
क्रोध हमारे सम्पूर्ण जीवन को बर्बाद कर देता है। क्रोध से हमेशा उसका परिणाम भयंकर वेदना मय होता है। क्रोध का परिणाम उसे खुद को तो वेदना देता है पर दुसरो के जीवन को भी अस्त व्यस्त कर देता है।
एक परिवार की घटना मुझे याद आ रही है- यह घटना हमारे ह्रदय को हिला कर रख देती है।
पति- पत्नी थे और उनका एक पुत्र था। पुत्र थोडा शैतान था। पुत्र जब शैतानी करता तो माँ उसको मारती थी- डाटती थी। बेटे को मारने और डाटने की बात पर पति- पत्नी मे झगड़ा होता रहता था।
एक दिन बच्चे ने बहुत शैतानी करी तो माँ उसे थप्पड़ मारा और पति से यह बात सहन नही हुई। दोनो मे भयंकर झगडा हुआ। और पति ने लडके का बैट लेकर पत्नी को मारा। बैट माथे पर लगने के कारण ब्रेन हेमरेज हुआ और पत्नी की मृत्यु हो गई। और पति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
माँ मर गई। पिता जेल मे और बेटा अनाथ हो गया। उस कैदी ने एक बात कही थी- मेरी पत्नी दुश्मन नही थी। बैट से मारा तब मेरा इरादा उसे मारने का नही था। परंतु इस एक क्षण के क्रोध ने मेरे संसार को तहस नहस कर दिया। मेरी पत्नी मर गई और बेटा अनाथ हो गया। मेरे सिर पर खुनी का धब्बा लग गया।
अग्नि की साक्षी मे जो संसार मांडा था, उसे मेरे क्रोध ने जला दिया।