आन्नद यानि जादू की चाबी जो तुम्हारे बंध जीवन के दरवाजे पर लगे विषाद के ताले खोल देते है। आन्नद का एक हथोडा ही हमारे सामने खड़े हिमालय के पहाड को गिरा देता है ।
आन्नद जीवन के आंगन मे आया हुआ अवसर है। आन्नद जीवन को सुगंधित बनाने का अवसर है।
आन्नद आवास है आन्नद आकाश है आन्नद सुवास है
आन्नद संसार है आन्नद तारणहार है आन्नद जीवन का नवलखा हार है ।
आन्नद जीवन के कपडे को सी देता है। आन्नद जीवन के विष को पी लेता है। आन्नद मन को मस्ती मे रखता है डूबते जीवन को कस्ती मे रखता है । आन्नद भिना मिना हरा घास है आन्नद श्वास है उच्छवास है आन्नद जीवन का खरा उजाला है आन्नद ढाका आन्नद माठ है छेडे छेडी की गांठ है ।
आन्नद हमारे घाव पर लगी महलम है। आन्नद रोमेन्टिक मलम है। आन्नद नशे की चलम है। आन्नद आन्नद है। आन्नद तो हर मानव के अंदर होता है हर एक मानव को उसे बहार निकालने की जरूरत है।
आन्नद एक फुल है और यह फुल हम मानव के जीवन मे खीलना ही चाहिए। आन्नद के पुष्प अगर हम हमारी स्भाव की धरती पर उगाए तो अन्य को तो इसकी सुगंध मिलेगी परन्तु हम खुद भी सुगंधित हो जाएंगे।
तो भी अनेक लोग अरन्डी के तेल होलसेल व्यापारी के तरह अपना वर्तन करते है उनके ह्दय मे से तो आन्नद का बीज पडा होता है तो भी आन्नद की कली नही खिलने देते है।
बहूत से लोग ऐसे भी होते है जो उपस्थित होता है उस आन्नद को भूलकर जिसकी मिलने की कम से कम शक्यता होती है उसकी राह देखते है और फिर आन्नद नही मिलता है तो दुःखी होते है।
उदाहरणार्थ एक आदमी लाख रुपए की लाटरी लगेगी उसकी राह देखने मे उसके पास जो हजार रुपये है
उसका भी उपयोग नही करता है और हर रोज हजार रुपये की लाटरी खरीदकर बर्बाद करता है और परिनाम स्वरूप लाख रुपये खोने का शोक करता है।
उदाहरणार्थ एक आदमी लाख रुपए की लाटरी लगेगी उसकी राह देखने मे उसके पास जो हजार रुपये है
उसका भी उपयोग नही करता है और हर रोज हजार रुपये की लाटरी खरीदकर बर्बाद करता है और परिनाम स्वरूप लाख रुपये खोने का शोक करता है।
आन्नद वो मन का लक्ष्ण है इसे कदापि मन मे मत मारना क्योंकि मन का संबंध शरीर के साथ है। मन आन्नद मे रहेगा तो शरीर भी आन्नद मे रहेगा।
प्रभु वीर बडे ही मजे की बात कहते है कि जो आन्नद दायक जीवन जीना चाहते है तो विसंवादो को अपने मन मे से निकाल दो, क्योंकि इसके बिना आन्नद मय जीवन का सर्जन नही हो सकता।
परमात्मा महावीर प्रभु का वाक्य पढकर ऐसा लगता है कि शायद परमात्मा आधुनिक मनो विज्ञान की परीभाषा मे बात करते थे। आन्नद और संवादिता परस्पर पर्याय है। अंत मे आन्नद यानि मन की एक भुमिका मन मे उठते भावतरंगे, भावलहरे मन के स्पंदन कलपना की अनोखी सृष्टि यह सब कुछ है। आन्नद जहाँ संवादिता देती है वहा जीवन के अंश अंग और तत्व साथ मे काम करते है । आधुनिक जगत के एक बड़े वर्ग के लोगो मे संवादिता का आभाव देखने मे मिलता है। मनुष्य मे स्यंम के भीतर की ही नही बाहर की संवादिता का आभाव भी देखने मे मिलता है। मनुष्य के अंदर ही कितने सारे तत्व विचार स्नेह एक दूसरे के सामने घुरते है आमने सामने खीचतान करते है। ऐसे विकंवादिता भरे जीवन मे बिचारा आन्नद कितना ठीक सकता है॥
“हमको जो कुछ भी अच्छा लगता हो सब कुछ प्राप्त करे यही आन्नद की बात है ।
परंतु हमको जो भी मिले वो अच्छा लगने लगे तो वह आन्नद की चाबी है” ॥