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सलाह & निर्णय कभी किसी पर थोपो मत

“कौन भले को पुछता है ? कौन बूरे को पुछता? मतलब की है दुनिया वरना यहाँ कौन सही पुछता है?  अत्तर निकालने के बाद कौन फूलो की दशा को पुछता है? सयोग झुका देता है। वरना यहाँ कौन खुदा को पुछता है ?”
किसी कवि ने यह सुंदर पंक्तिया बोली है जो एक अच्छा बोध देती है ” जीवन मे हमेशा याद रखना सलाह और निर्णय कभी भी बिना मांगे नही देना चाहिए”। जबरदस्ती थोपा गया निर्णय और बिना मांगे दी गई सलाह हमेशा संबंधो को तोड़ने का कार्य करती है। क्योंकि इस मे मानव संबंधो की लिमिट को क्रोस करता है और संबंध टूटने की कगार पर आ जाता है। हमे किसी पर भी हमारे निर्णयो को श्रोपने प्रयत्न करना गलत है। क्योंकि हर व्यक्ति स्वतंत्र है पर हमसे जो सबसे ज्यादा नजदीक होता है उस पर हम हक जमा बैठते है और चाहते है कि वह वही करे जैसे हम कहते है, बोलते है। हर इन्सान खुद को बुद्धिशाली मानता है। हर इंसान यह मानता है कि मै जो विचारता हूँ वही सही है। प्रोब्लम की शुरुआत वही से होती है। मानव दुसरे के विचारो को स्वीकार नही सकता है। हमे दुसरे के विचारो को सम्मान देने की आदत डालना चाहिए।
जो संबंध मानव को भूल करने का अधिकार देता है वही संबंध एकदम मजबूत होता है। हमे भूल करने का अधिकार देना चाहिए। एक पति पत्नी के बीच मे विवाद हो गया। पत्नी खुद को ही सही मान रही थी। और पति को पत्नी का निर्णय सही नही लग रहा था। जिसके कारण दोनो के बीच मे झगड़ा हो गया था। पत्नी ने कहा कि अगर आपको ऐसा लगता है कि आप जो सोचते हो, विचारते हो वही सही है मै तो आपको हमेशा गलत ही लगती हूँ। अरे मुझे मेरा निर्णय सही लगता हो तो क्या करना? पति समझदार था। उसे पति की बात सही लगी। उसने कहा मै कहु वह तुझे करना जरूरी नही है पर मेने तो मेरा अभिप्राय तुझे बताया है। मेने मेरा निर्णय तेरे पर थोपा नही है। मै तो तुझसे प्रेम करता हूँ। और भविष्य मे जो भी होगा उस समय भी मै तेरा ही रहूँगा।
हमारे संबंधो मे भी इतनी सहजता और सरलता है?  हमने संबंधो को इस तरह से मेनटेन करा है या फिर सामने वाले पर हमने अपना निर्णय थोपा और उसने नही माना तो हम उसके साथ कैसा वर्तन करते है? अगर उसका निर्णय गलत साबित होता है तो हम पलक फावड़े बिछाकर उसे टोन्ट मारने के लिए तैयार रहते है-
मै तो तुझे कहता था पर तू कहा किसी का सुनने को तैयार थी? अब भोगो।”
“तुम जुते खाते हो तभी समझते हो। ठोकर खाये बिना तुम्हे नही समझाया जा सकता है।”

और इस तरह हम हमारे को पढाते है और ऐसी मंशा रखते है कि भविष्य मे हर बात को माने। पर ऐसा प्रयास इन्सान की आजादी छीनने का प्रयास है। और इन्ही करणो से आज बाप- बेटे मे, पति- पत्नी मे, भाई- बहन मे, माँ- बच्चे मे दूरिया बढती जा रही है।
हमेश कोई भी कभी भी सलाह मांगे तो उन्हे सलाह के बदले निर्णय मत दे। सलाह भी निर्णय के स्वरूप नही अभिप्राय के रूप मे दे। मै ऐसा मानता हूँ पर गलत भी हो सकता हूँ। आप विचार करते समय और निर्णय लेते वक्त मेरी बात को ध्यान मे लेना फिर आपको जो उचित लगे वो निर्णय लिना।

हमारा ऐसा व्यवहार संबंधो मे एक नई मिठास भरता है ।।

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