दोस्तों,
आधुनिकता मै सब मोबाइल, इंटरनेट ,आदि की सुविधा से पास होकर भी एक दूसरे से दूर काफी दूर हो गए है । अब तो हम एक दूसरे के नम्बर तक भी मोबाइल की सुविधा के बगैर नही जान सकते ।
पहले लोग संयुक्त परिवार में रहा करते थे। पुरुष बाहर कमाने जाया करते थे और महिलाएं मिल-जुलकर घर-परिवार का कामकाज किया करती थीं। परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के लिए आदर-सम्मान और अपनापन हुआ करता था, लेकिन अब संयुक्त परिवार टूटकर एकल हो रहे हैं। महिलाएं भी कमाने के लिए घर से बाहर जा रही हैं। उनके पास बच्चों के लिए ज्यादा वक्त नहीं है।
बच्चों का भी ज्यादा वक्त घर से बाहर ही बीतता है। सुबह स्कूल जाना, होम वर्क करना, फिर ट्यूशन के लिए जाना और उसके बाद खेलने जाना। जो वक्त मिलता है, उसमें भी बच्चे मोबाइल या फिर कम्प्यूटर पर गेम खेलते हैं। ऐसे में न माता-पिता के पास बच्चों के लिए वक्त है और न ही बच्चों के पास अपने बड़ों के लिए है।
जिंदगी की जद्दोजहद ने इंसान को जितना मसरूफ बना दिया है, उतना ही उसे अकेला भी कर दिया है। हालांकि आधुनिक संचार के साधनों ने दुनिया को एक दायरे में समेट दिया है।
मोबाइल, इंटरनेट के जरिए सात समंदर पार किसी भी पल किसी से भी बात की जा सकती है। इसके बावजूद इंसान बहुत अकेला दिखाई देता है। बहुत ही अकेला, क्योंकि आज के दौर में ‘अपनापन’ जैसे जज्बे कहीं पीछे छूट गए हैं। अब रिश्तों में वह गरमाहट नहीं रही, जो पहले कभी हुआ करती थी।
जिंदगी की आपाधापी में रिश्ते कहीं खो गए हैं शायद इसीलिए अब लोग परछाइयों यानी वर्चुअल दुनिया में रिश्ते तलाशने लगे हैं। लेकिन अफसोस! यहां भी वे रिश्तों के नाम पर ठगे जा रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट पर ज्यादातर प्रोफाइल फेक होते हैं या फिर उनमें गलत जानकारी दी गई होती है। झूठ की बुनियाद पर बनाए गए रिश्तों की उम्र बस उस वक्त तक ही होती है, जब तक कि झूठ पर पर्दा पड़ा रहता है। लेकिन जैसे ही सच सामने आता है, वह रिश्ता भी दम तोड़ देता है।
दोस्तों, कई बार हम खुद भी बच्चों को अपने रिश्तों से परिचय नही करवाते,एक समय बाद रिश्ते धीरे धीरे दफन से हो जाते है । ये समस्या आपकी ही नही मेरी भी है । इस आधुनिकता मै जँहा हम अपनापन, लगाव, इंसानियत, भूलते जा रहे हैं, वंही नई पीढ़ी को ये नही समझा पा रहे की रिश्ते क्या होते और कितने महत्वपूर्ण होते है ।
एक समय था जब घर मै कोई शादी का कार्यक्रम होता था, तब दूर दूर के रिश्तेदार 5 दिन पूर्व आकर शामिल हो जाते थे, और आज का समय है जब करीबी रिश्तेदार भी कुछ घण्टो के लिये आते और चले जाते है।
एक औपचारिकता रह गयी हैं ।
कौन जिम्मेदार है, क्या रिश्तों सच मे औपचारिक हो गए, कैसे सम्भाले रिश्तों की डोर, कितने जरूरी है रिश्ते,क्या जीवन की भागा दौड़ी मै रिश्ते नही निभा पा रहे हम, कई प्रश्न उठते और दब जाते । विचार मुझे और आपको नही हमे करना । वरना कल के बच्चे सिर्फ माँ बाप भाई बहन तक के रिश्तों तक सीमित रहेंगे ।