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Story Of The Day 2nd, February 2016

-धर्म जगत का मार्गदर्शक-

धर्म गुणों का सागर है ।
धर्म सुखों का आगर है ।
धर्म बिना यह जीव जगत में,
बना हुआ नित चाकर है ।
धर्म सखा है, धर्म बंधु है,
धर्म ही स्वर्ग का दाता है ।
नमू-नमू है धर्म तुम्हे,
धर्म ही सच्चा सुख प्रदाता है ।

धर्म क्या है ? धर्म विश्व व्यवस्था का मूल आधार है । धर्म की व्याख्या, वस्तु स्वरूप का निरूपण है । धर्म ही व्यक्ति का जीवन सुव्यवस्थित कर आत्म कल्याण की ओर आगे बढा़ता है । धर्म से ही जगत संचालन संतुलित होता है । जहां धर्म की अवहेलना होती है, संतुलन बिगड़ जाता है । धर्म सभी के लिये शरणभूत है । धर्म का आलंबन सभी के लिये अनिवार्य है । जहां धर्म नहीं, वहां पतन निश्चित है । अतः धर्म सभी क्षेत्रों में सर्वोपरि है ।

भारत संतों की पुण्य भूमि रही है । जहां धर्म के संस्कार हमें विरासत में मिले है । धर्म जीवन का अभिन्न अंग है, जिसको अलग नहीं किया जा सकता । जीवन का सार ही धर्म है । हर कार्य में धर्म की मर्यादा हो, आचरण व व्यवहार में धर्म का अंकुश हो तभी जीवन में निखार आता है ।

धर्म मंदिर मे बैठकर दो चार घड़ी किया जानेवाला पूजा विधान नहीं है । धर्म तो जीया जानेवाला अनुष्ठान। मंदिर धर्म सिखने की पाठशाला है और मंडी धर्म जीने की प्रयोग शाला है । धर्म मन की पवित्रता व ह्रदय की निर्मलता मांगता है । विविध नाम से जो प्रचलित है वह धर्म नहीं वह मजहब अथवा संप्रदाय हो सकता है । धर्म तो जीवन के उत्थान व अभ्युदय का साधन है ।

राष्ट्र व समाजरूपी रथ के लिये धर्मरूपी सारथी होना जरूरी है तभी राष्ट्र व समाज को सही दिशा प्राप्त होगी । धर्म का अंकुश हर क्षेत्र मे आवश्यक है । धर्म जहां राष्ट्र व समाज के लिये सुव्यवस्था तय करता है, वहां व्यक्ति के लिये सत्य अहिंसा व आचरण शुद्धि की प्रेरणा देता है । सभी के उत्थान के लिये भगवान महावीर के मौलिक सिद्धांत अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रम्हचर्य को जीवन मे पुर्णतः उतारना होगा तभी जीवन मे धर्म आयेगा ।

भारत में विभीन्न धर्म, मान्यताये प्रचलित है परंतु सभी धर्म का सार शाश्वत सुख शांति को प्राप्त करना है जो मात्र अहिंसा के बदौलत ही संभव है । जैन धर्म का मूल आधार अहिंसा धर्म का पालन करना है । हिंसा का त्याग व न्याय का अनुसरण जहां है वहीं धर्म है । संत कहते है, धर्म उत्कृष्ट मंगल है । अहिंसा, सत्य, संयम, तप उसका स्वरूप है । धन तो समय आने पर समाप्त हो जाता है । धर्म समय आनेपर साथ देता है । धन और धर्म मे बस यहीं अंतर है । धर्म के साथ चलने पर ही मोक्षद्वार तक पहुंचा जाता है । धर्म ही हमारा सच्चा साथी और मार्गदर्शक है ।

दुःख से भरा संसार है,
यहां कर्मो का व्यापार है ।
धर्म शरण से मुक्ति मिलेगी,
मॉ जिनवाणी का सार है ।
नैया पड़ी मझधार है,
करना संसार सागर पार है,
आजा जिनवाणी शरण में,
तो होगा बेड़ा पार है।

Story Of The Day 2nd, February 2016
February 2, 2016
Story Of The Day 3rd, February 2016
February 3, 2016

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