-धर्म जगत का मार्गदर्शक-
धर्म गुणों का सागर है ।
धर्म सुखों का आगर है ।
धर्म बिना यह जीव जगत में,
बना हुआ नित चाकर है ।
धर्म सखा है, धर्म बंधु है,
धर्म ही स्वर्ग का दाता है ।
नमू-नमू है धर्म तुम्हे,
धर्म ही सच्चा सुख प्रदाता है ।
धर्म क्या है ? धर्म विश्व व्यवस्था का मूल आधार है । धर्म की व्याख्या, वस्तु स्वरूप का निरूपण है । धर्म ही व्यक्ति का जीवन सुव्यवस्थित कर आत्म कल्याण की ओर आगे बढा़ता है । धर्म से ही जगत संचालन संतुलित होता है । जहां धर्म की अवहेलना होती है, संतुलन बिगड़ जाता है । धर्म सभी के लिये शरणभूत है । धर्म का आलंबन सभी के लिये अनिवार्य है । जहां धर्म नहीं, वहां पतन निश्चित है । अतः धर्म सभी क्षेत्रों में सर्वोपरि है ।
भारत संतों की पुण्य भूमि रही है । जहां धर्म के संस्कार हमें विरासत में मिले है । धर्म जीवन का अभिन्न अंग है, जिसको अलग नहीं किया जा सकता । जीवन का सार ही धर्म है । हर कार्य में धर्म की मर्यादा हो, आचरण व व्यवहार में धर्म का अंकुश हो तभी जीवन में निखार आता है ।
धर्म मंदिर मे बैठकर दो चार घड़ी किया जानेवाला पूजा विधान नहीं है । धर्म तो जीया जानेवाला अनुष्ठान। मंदिर धर्म सिखने की पाठशाला है और मंडी धर्म जीने की प्रयोग शाला है । धर्म मन की पवित्रता व ह्रदय की निर्मलता मांगता है । विविध नाम से जो प्रचलित है वह धर्म नहीं वह मजहब अथवा संप्रदाय हो सकता है । धर्म तो जीवन के उत्थान व अभ्युदय का साधन है ।
राष्ट्र व समाजरूपी रथ के लिये धर्मरूपी सारथी होना जरूरी है तभी राष्ट्र व समाज को सही दिशा प्राप्त होगी । धर्म का अंकुश हर क्षेत्र मे आवश्यक है । धर्म जहां राष्ट्र व समाज के लिये सुव्यवस्था तय करता है, वहां व्यक्ति के लिये सत्य अहिंसा व आचरण शुद्धि की प्रेरणा देता है । सभी के उत्थान के लिये भगवान महावीर के मौलिक सिद्धांत अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रम्हचर्य को जीवन मे पुर्णतः उतारना होगा तभी जीवन मे धर्म आयेगा ।
भारत में विभीन्न धर्म, मान्यताये प्रचलित है परंतु सभी धर्म का सार शाश्वत सुख शांति को प्राप्त करना है जो मात्र अहिंसा के बदौलत ही संभव है । जैन धर्म का मूल आधार अहिंसा धर्म का पालन करना है । हिंसा का त्याग व न्याय का अनुसरण जहां है वहीं धर्म है । संत कहते है, धर्म उत्कृष्ट मंगल है । अहिंसा, सत्य, संयम, तप उसका स्वरूप है । धन तो समय आने पर समाप्त हो जाता है । धर्म समय आनेपर साथ देता है । धन और धर्म मे बस यहीं अंतर है । धर्म के साथ चलने पर ही मोक्षद्वार तक पहुंचा जाता है । धर्म ही हमारा सच्चा साथी और मार्गदर्शक है ।
दुःख से भरा संसार है,
यहां कर्मो का व्यापार है ।
धर्म शरण से मुक्ति मिलेगी,
मॉ जिनवाणी का सार है ।
नैया पड़ी मझधार है,
करना संसार सागर पार है,
आजा जिनवाणी शरण में,
तो होगा बेड़ा पार है।