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तत्व दर्शन

philosophy

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सर्व दोष रहित और सर्वगुण सहित ऐसे शुद्ध आत्मतत्व को पाने का साधन दोष की ग्रह और गुण की अनुमोदना है ।

जब तक दोस्ती अंश मात्र भी अनुमोदना है और गुण की अंश मात्र भी ग्रहा है तब तक शुद्ध आत्म स्वरूप की रुचि , श्रद्धा या परिणति हुई है , ऐसा नहीं कह सकते हैं ।

वितराग ही एक आराध्य देव है , निरग्रंथा ही एक पूज्य गुरुदेव है और जीव दया ही एक शुद्ध धर्म है , ऐसी समझ आने पर ही दुष्कर ग्रहा , सुक्रत अनुमोदना या अरिहंतादि के शरणगमन होना शक्य है ।

ध्येय , आराध्य और उपास्य रूप में वितराग देव , निग्रंथ गुरु और दयाधर्म , जिनके हदय में बसा है , उनके हदय में पल-पल दुष्कृत ग्रह सुकृतानुमोदना और धर्म का शरणगमन बसा हुआ है। दूष्कृत में हैय बुद्धि , सुकृत में उपादेय बुद्धि और धर्म में अत्यंत उपादेय बुद्धि सम्ययगदर्शन का लक्षण है । उसी को संसार हेय , मोक्ष उपादेय और उसका साधन रत्नत्रय अत्यंत उपादेय लगता है।

संसार पाप का स्थान है , मोक्ष गुण का धाम है । धर्म में पाप का परिहार है, इन तीनों तत्वों की श्रद्धा ही सम्यग् दर्शन की निशानी है ।

दुख का कारण दुष्कृत , सुख का कारण सुकृत और अक्षय अव्यबाध सुख का कारण धर्म है । धर्म में दया मुख्य है । दया यह दुखी के दुख को दूर करने की वृत्ति है , भावना है । स्व -पर के दुखो पर द्वेष और स्व -के सुखों पर सच्चा अनुराग तभी प्रकट हुआ कहलायेगा जब दया में धर्म बुद्धि पैदा हुई होगी दया , के अहिंसा , संयम , तप , शिल , संतोष, क्षमा , मार्दव , आर्जव , दान ,परोपकार , निस्वार्थ स्नेह आदि पर्याय है ।

सच्चे हृदय से दुष्कर्म ग्रह करने से ऐसी अग्नि पैदा होती है जो चिकने कर्मों को भी भस्मीभूत कर देती है और तीव्र सुकृत अनुमोदना के परिणाम स्वरुप सुकृत के सागर श्री अरिहंत परमात्मा के चरणों में मन को समर्पित करते हुए शुद्ध धर्म में अपनी आत्मा रमणता करती है।

आर्तध्यान रूप कल्पना जाल का उच्छेद स्व के सुख दुख की चिंता छोड़ने से होती है और सभी जीवो के सुख दुख की चिंता करने से समत्व भाव की पुष्टि होती है । अनंत गुण पर्याय से समृद्ध एसे आत्मा द्रव्य में रमणता करने से समस्त कर्मों का क्षय होता है ।

आर्त – रौद्रध्यान का त्याग , धर्मध्यान सेवन और शुक्लध्यान का अभ्यास ये मनोगुप्ति के तीन द्वार है ।

स्व के सुख-दुख का विचार आर्तध्यान का बीज है , सभी के सुख-दुख का विचार धर्मध्यान का बीज है और आत्मतत्व – आत्म द्रव्य का विचार यह शुक्लध्यान का बीज है ।

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जैनधर्मरागी अजेन
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शक्ति पर असर
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