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धर्म में अंतराय का पाप भारी

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कुछ साल पहले घटी यह सत्य घटना हमें आनंद-आश्र्चर्य आदि अनेक भाव पैदा कर सके ऐसी है। अहमदाबाद शहर में यह लड़की अति धार्मिक परिवार में जन्म पाने का जबरदस्त पुण्य लेकर आई। हम उसे भव्या नाम से पहचानेंगे। उसके दादा आदि ने दीक्षा ली थी। पूर्व जन्म की साधना से एवं घर के संस्कारों से बचपन से उसे धर्म प्रिय था। ग्यारह साल की उम्र में उपधान किया। पूजा,चोविहार, तप आदि नित्य आराधनाओं के साथ नृत्य -गायन आदि कलाओं में होशियार थी। दीक्षा ली भावना हुई। उसकी मां भी धर्मी थी। दोनों साथ में दीक्षा ले ऐसी उनकी भावना थी। फिर भी किसी विचित्र कर्मसंयोग से उसे १९ साल की होने पर शादी करनी पड़ी। सचमुच ही धर्मरागी होने से शादी के बाद भी, युवा होते हुए भी हंसी मजाक करने के बजाय चोविहार आदि बहुत से आराधनाए उसने जारी रखी। पति पढ़ाई करता था। उसकी अंगत बातें प्रभु जाने। लेकिन पापोंदय से २३ साल की युवावस्था में भव्या साधना करने परलोक चली गई । डॉक्टर के रिपोर्ट के अनुसार वह ब्रह्माचारी ही रही थी !उसे किसी ने जहर दिया होगा। जो कुछ भी हुआ हो, लेकिन ज्ञानीयों के वचनों के अनुसार भव्या का सच्चे भाव से किया धर्म जरूर उसकी आत्मा को जल्दी मोक्षमार्ग की उच्च साधना करवाकर शिवसुख प्राप्त करा देगा। यह प्रसंग पढ़कर जैनों को खूब सोचने जैसा है। सबसे पहले तो धर्म अच्छा लगने पर भी मोह आदि की वजह से तुम रिश्तेदारों को, स्नेहीस्वजनों को धर्म आराधना में निषेध करोगे, तो इससे तुम्हारा भी अहित जरूर होता है। और उसका भाव भी खत्म हो जाए तो आराधना से वह आत्मा भी वंचित रहती है। यदि वह धर्मी रहे तो उसका तो कल्याण ही होगा।

आज के स्वच्छंद समाज में बहुत सारे अनिच्छनीय आचार – दोष तुम्हारे पति पत्नी – पुत्र आदि करते हैं तो उसे तुम देख लेते हो। और हजारों में एकाध साधक छोटा सा धर्म करता है तो तुम मना करते हो। जेन कहलाने वाले आपको क्या यह शोभा देता है? इससे बांधे हुए पाप भयंकर दुख भी देंगे, और अनेकानेक भव में धर्म भी नहीं मिलेगा । क्या यह तुम्हें पसंद है ? इसलिए दृढ़ निश्चय करो कि धर्म करते किसी को भी नहीं रोकेंगे। सचमुच उनकी प्रशंसा करनी चाहिए।

यह सूश्राविका आराधक धर्मी है। मुझसे कहा, “आप श्री को ठीक लगे तो बिना नाम सब छपवाना। दूसरों को मेरी तरह भूल करके पछताना न पड़े ।” दानप्रेमी दूसरे एक श्रावक का प्रसंग यहां लेना था। लेकिन किसी कारण वश उनके मना करने पर छोड़ दिया। जबकि यह धर्म श्राविका तो नाम के साथ छापने को भी संमत थी। कालेज- शिक्षण के आज के जमाने के बारे में एक आधुनिक चिंतक ने कटाक्ष करते हुए कहा है: बी.ए. किया, नौकर हुए,पेन्शन मिला, फिर मर गए। संसार का अंजाम है भयंकर दु:ख जबकि धर्म के फलमें सर्वत्र सुख।

इसलिए तुम और तुम्हारे स्वजन धर्म करो और शाश्वत सुख पाओ यही शुभेच्छा।

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