सेवा ऐसे भी होती है:
मुझे एक परिवार की बात करनी है। उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी। तीन भाइयों को कमाने के लिए शहर में आना पड़ा। तीनों भाइयों ने तय किया कि माता-पिता गांव के रहने वाले हैं और उन्हें शहर का जीवन अनुकूल नहीं आता। उन्हें दबाव डालकर यहां नहीं लाना चाहिए। उनकी खुशी के लिए बारी-बारी से तीनो भाई एक-एक वर्ष माता-पिता की सेवा करने के लिए उनके साथ रहेंगे। गांव में रहनेवाले भाई के पुत्र-पुत्री शहर के स्कूल में पढ़ते हो तो दूसरे भाई उनकी देखभाल करेंगे। ऐसी व्यवस्था करके तीनों भाइयों ने माता-पिता को संतुष्ट किया। इस प्रकार माता-पिता जीवित रहे तब तक उन्हें खुश रखने के लिए उनके साथ जाकर रहे और उनकी सेवा की।
इस प्रकार आपको भी अपने उपकारी माता-पिता से सेवा लेनी नहीं है, बल्कि उनकी सेवा करनी है। यह सेवा भी इस प्रकार करनी है कि माता-पिता को अनुकूल आए, न कि आप की अनुकूलता अनुसार। कुछ लोग मुझसे कहते हैं कि ‘साहब’ कई बार माता-पिता से कहा कि आप गांव से शहर में आ जाओ, हमें गांव में आकर रहना अनुकूल नहीं आता, किंतु वह बहुत जिद्दी है, मानते ही नहीं। साहब! हमारे बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, शहर में व्यापार-धंधा है तो हम कैसे वहां जाकर रह सकते हैं? मैंने कहा, ‘माता-पिता ने तुम को जन्म दिया और छोटे से पालन पोषण करके इतना बड़ा किया। उनकी जिंदगानी का विचार नहीं आया और अपने पुत्र-पुत्री की शिक्षा का दर्शन हुआ? अपने बच्चों की पढ़ाई दिखी, माता-पिता का जीवन नहीं दिखा?
आपको अपने पुत्र को देखकर नए-नए मनोरथ होते हैं, उन्हें देखकर जो उमंगें होती है, ऐसे मनोरथ तथा उमंग माता-पिता को देखकर भी होते हैं? अपने पुत्र अथवा पुत्र के पुत्र को देखकर आपको जो आनंद मिलता है, ऐसा आनंद अपने माता-पिता को देखकर आता है? जैसे अपने पुत्र-पुत्री को चीजें लाकर देते हो, वैसे अपने माता-पिता को लाकर देते हो? यदि इस परिस्थिति में सुधार नहीं लाओगे तो आपका धर्म भी शोभास्पद नहीं बनेगा। माता-पिता की उपेक्षा करके आप देव-गुरु की उच्च भक्ति भी करोगे तो वह हास्यास्पद ही बनेगी। वह धर्मक्रिया मात्र क्रिया ही बनी रहेगी, उसमें से धर्म कदाचित प्रगट नहीं होगा।
सभा: जितनी बार घर आए उतनी बार पैर धोएं?
आप जितनी बार बाहर से आते हो उतनी बार हाथ-पैर धोते हो? अपने शरीर की शुद्धिकरण कि इतनी सावधानी रखते हो तो क्या माता-पिता के शरीर की शुद्धि की सावधानी नही रखना चाहिए?