कवियों की यह बात सुनकर महाराजा ने तत्काल भोगवती वेश्या को आदेश दिया कि तू इन कवियों की प्रशंसा कर।
भोगवती ने कहा, राजन! मैं तो पादलिप्त आचार्य की ही स्तुति करती हूं, उनके सिवाय इस दुनिया में स्तुति पात्र और कौन है? उनको छोड़कर इस दुनिया में अन्य गुणवान पुरुष कौन है?
वैश्या की यह बात सुनकर शंकर नाम का एल ईर्ष्यालू व्यक्ति बोला, मात्र आकाश में उड़ने से क्या? हाँ! यदि वह मर कर भी जीवित हो जाए, तो हम उनकी विद्वता मान सकते हैं।
भोगवती ने कहा, अरे! इसमें क्या बड़ी बात है? यह भी उनके लिए असंभव नहीं है। जैन महर्षि तो देवताओं की भांति अतुल्य प्रभाव वाले होते हैं।
वेश्या का यह कथन सुनकर महाराजा के ह्रदय में एक कुतुहल पैदा हुआ। मुझे अवश्य ही पादलिप्त सूरी की प्रतिभा देखनी चाहिए। बस, इस बात का निर्णय कर महाराजा ने मानखेट नगर में रहे हुए आचार्य म. को स्व नगर में पधारने के लिए आमंत्रण दिया।
महाराजा के आमंत्रण को प्राप्त कर पादलिप्त सूरी म. ने प्रथ्वी प्रतिष्ठानपुर नगर की ओर विहार यात्रा प्रारंभ कर दी। कुछ ही दिनों में वे नगर के बाह्य उद्यान में आ पहुंचे।
महाराजा को आचार्य म. के आगमन के समाचार प्राप्त हुए। आचार्य भगवंत की प्रतिभा की जानकारी हेतु महाराजा ने आचार्य म. के पास घी से भरा हुआ एक कटोरा भेजा।
राजसेवक घी से भरा हुआ कटोरा लेकर आचार्य भगवंत के सम्मुख उपस्थित हुआ। घी से भरे हुए कटोरे को देखकर आचार्य भगवंत ने उस कटोरे में एक तीक्ष्ण सुई खोच दी और वह कटोरा वापस महाराजा के पास भिजवा दिया।
घी से भरे हुए कटोरे को देखकर महाराजा आचार्य भगवंत की बुद्धि/प्रतिभा से प्रभावित हुए।
घी से भरा हुआ कटोरा भेजकर राजा ने आचार्य भगवंत से यह प्रश्न किया था कि, है महात्मन! मेरी यह राजसभा अनेक प्रकांड विद्वानों से भरी हुई है, मेरी इस राजसभा में आपका प्रवेश कैसे होगा?
राजा के इस प्रश्न के जवाब में आचार्य भगवंत ने कहा, हे राजन! जिस प्रकार घी से भरे हुए कटोरे में भी यह सुई अपना स्थान आसानी से बना लेती है और थोड़े भी घी को बाहर नहीं निकालती है, इसी प्रकार मैं भी अपने बुद्धि प्रतिभा से आपकी राज सभा में प्रवेश करूंगा।
आचार्य भगवंत की बुद्धि से अत्यंत प्रभावित महाराजा ने दूसरे ही दिन आचार्य भगवंत का भव्य नगरप्रवेश कराया।