प्रस्तुत है जिन-शासन के अजोड़ आधारक, प्रभावक और संरक्षक सूरीश्वर की यशोगाथा…।
. . . शासन की रक्षा के लिए जिन्होंने बलिदान की भी अपनी तैयारी दिखलाई थी. . .। केवल इतिहास को जानने की दृष्टि से नहीं . . . किंतु महान इतिहास सर्जक बनने के उद्देश्य को लेकर इस चरित्र- गाथा का अध्ययन करें. . . तो . . .
आपके जीवन में नया उत्साह, नया जोश पैदा हुए बिना नहीं रहेगा।
1. भौतिक सुख की अपूर्णता
कोशला नगरी! नगरी के शासक थे विजयवर्म!! महाराजा अत्यंत न्याय प्रिय और प्रजावत्सल थे। वे सतत प्रजा की हीत- चिंता करते थे । प्रजा के सुख दुख में वे पूर्ण सहभागि थे। अतः प्रजा के ह्रदय में महाराजा के प्रति पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा थी।
उसी नगरी में फुल्ल नामक एक धनाढ्य सेठ भी रहता था। प्रतिमा नामकी उसकी धर्मपत्नी थी। उनका दाम्पत्य- जीवन सुखपूर्ण था । धन और वैभव की कोई कमी नहीं थी। किंतु संसार की हि यह विचित्रता है कि यहाँ व्यक्ति को सुख किसी न किसी ढंग से अपूर्ण अवश्य होता है। किसी को धन का पूर्ण सुख है तो स्वास्थकी प्राप्ति नहीं है धन भी है, शरीर भी स्वस्थ हैं तो गोद में खिलाने के लिए संतान नहीं है। सन्तान हो किंतु पुत्र न हो तो भी दुःख।सभी पुत्र ही हो,एक भी पुत्री न हो तो भी दुःख।
इस प्रकार एक सुख की कमी और उसको पूर्ण करने की आशा शेष समस्त सुखों के स्वाद को नष्ट कर देती है।
फुल्ल और प्रतिमा का दाम्पत्य- जीवन हर प्रकार से भरपूर था, किंतु एक संतान का अभाव उन्हें सतत खटकता रहता था और उस दुःख से संतप्त थे