आर्यरक्षित की बात शिष्य समझ न सके……. फिर भी उन्होंने गुरु आज्ञा को ‘तहत्ति’ कर स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन आर्यरक्षित सूरिवर विहार कर पास के गांव में चले गए।
सोमदेव मुनि वहीं ठहरे हुए थे। सभी शिष्य गोचरी लाकर वापरने लगे, किंतु उन्होंने सोमदेव मुनि को आमंत्रण नहीं दिया। 2 दिन तक वे भूखे रहे और तीसरे दिन आर्यरक्षित सूरिवर वापस लौट आए।
आर्यरक्षित सुरिवर के आने के साथ ही सोमदेव मुनि ने कहा, यदि आप थोड़े दिन अधिक बाहर रहते तो अकाल में हीं मेरी मृत्यु हो जाती…… आपकी आज्ञा होने पर भी किसी मुनि ने मुझे भोजन के लिए आमंत्रण नहीं दिया।
तुरंत ही झूठा कोप करते हुए आर्यरक्षित सुरिवर बोले, तुमने पिता मुनि को भोजन के लिए आमंत्रण क्यों नहीं दिया?
तभी पूर्व शिक्षित एक मुनि ने कहा, भगवंत! आपके विरह की व्यथा से हम शुन्यमनस्क हो गए थे, अतः हमारे इस अपराध को आप क्षमा करें।
तभी आर्यरक्षित सुरिवर ने पिता मुनि को कहां, पराभव में कारणभूत ऐसी दूसरे की आशा कभी नहीं करना चाहिए। पर की आशा अंत में निराशा पैदा करती है।
इतना कहकर आर्यरक्षित सूरिवर स्वयं खड़े हो गए और बोले, “आपके उचित आहार के लिए मैं स्वयं जाता हूं।”
तभी सहसा सोमदेव मुनि बोले, वत्स! मेरे होते हुए तुम भिक्षा के लिए कहां जाओगे? तुम तो गच्छ के अधिपति हो…… तो तुम्हें जाना उचित नहीं है। इतना कहकर निषेध करते हुए भी पात्र ग्रहण कर भिक्षा के लिए निकल पड़े।
किसी श्रेष्ठी के पिछले द्वार से उन्होंने हवेली में प्रवेश किया और जोर से ‘धर्मलाभ’ बोले।
मकान के पीछले द्वार से गोचरी के लिए आए मुनिवर को देखकर श्रावक ने पूछा, “हे मुनिवर! आप मुख्य द्वार से क्यों नहीं आए?”
सोमदेव मुनि ने कहा “हे महानुभाव! क्या लक्ष्मी पिछले दरवाजे से नहीं आती है?”
उस श्रावक ने खुश होकर अत्यंत भक्तिभावपूर्वक सोमदेव मुनि को 32 लड्डु बहोराये।
सोमदेव मुनि गोचरी बहोरकर उपाश्रय में आए। प्रथम दिन भीक्षा में सोमदेव मुनि के पात्र में 32 लड्डू देखकर निमित्त शास्त्र में उपयोग देखकर आर्यरक्षित सुरिवर ने सोचा पहली भिक्षा में 32 लड्डू मिले हैं, अतः मेरे पीछे 32 शिष्य होंगे।
आर्यरक्षित सूरीवर ने पूछा, तात! पहले राजकुल में से जो धन मिलता था……… उनका स्व-उपभोग करने के बाद किसे देते थे?”
सोमदेव ने कहा, “गुणवान पुरोहित को देते थे।”
आर्यरक्षित ने कहा, ‘योग्य पात्र में लक्ष्मी का दान करने से वह नवीन सुकृत को जन्म देने वाली बनती है, अतः यह अपने साधु गुणों की निधि है….. योग्य पात्र हैं, इनकी भक्ति करने से महान पूण्य का बंध होता है।
आर्यरक्षित सुरिवर कि यह बात सुनकर उत्साही बने सोमदेव मुनि ने कहा, “बाल, ग्लान आदि साधुओ के लिए उपकारी आहार लाकर मैंने क्या नहीं पाया? “अर्थात मैंने बहुत कुछ पाया है”
इस प्रकार आर्यरक्षित सूरीवर ने अपने सोमदेव मुनी के मन में भी भिक्षावृत्ति के प्रति आदर भाव पैदा कर दिया।
अब सोमदेव मुनि सुंदर रीती से संयम धर्म की आराधना करने लगे।