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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 1

चमकते तारों को तो सभी दिशाएं धारण करती है………….परंतु तेजस्वी सूर्य की जनेता का यश तो ‘पूर्व’ दिशा को ही है।

बस! सामान्य पुत्रों को जन्म देने वाली तो अनेक स्त्रियां है, परंतु युगप्रधान जैसे महर्षियों की जनेता तो विरल ही रूद्रसोमा जैसी माताएं होती है।

इतिहास के पन्नों पर अंकित इस महान प्रभावक चरित्र को जरा ध्यान से/ गौर से पढ़िए।

संभव है, आपके जीवन में नया मोड़ आ जाए…….. आपके जीवन की दिशा ही बदल जाए।

माँ तू प्रसन्न क्यो नही है?..

संगीत के सुरीले स्वरों में अंतर के भावों को अभिव्यक्त करने की शक्ति रही हुई है। परमात्मभक्ति के रस में निमग्म भक्त भक्त जब वीणा के मधुर स्वर के साथ तन्मय बन जाता है……….तब उसे पता ही नहीं चलता है कि समय कितना बीत चुका है।

संगीत के स्वरों ने किसको आकर्षित नहीं किया? भोगी और योगी, दोनों के आकर्षण का केंद्र बना है संगीत।

भोगी को पसंद है कामोत्तेजक संगीत।

योगी को पसंद है भक्ति और समर्पण का संगीत।

समर्पण सभी के जीवन का अंग है। हां! समर्पण की दिशा………. समर्पण का पात्र भिन्न भिन्न हो सकता है।

किसी का समर्पण होता है……… विशुद्ध आत्मा के चरणों में…….. तो किसी का समर्पण होता है जड़ के रंगों से रंजीत भौतिक देह और देही के प्रति।

समर्पण आनंद भी देता है और विषाद भी।

शाश्वत तत्व के प्रति किया गया समर्पण आनंद में परिणत होता है।

क्षणिक तत्व के प्रति किया गया समर्पण अंत में विषाद को जन्म देता है।

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