आचार्य श्री के अदभुत रुप और स्वच्छ चरित्र पालन की अलौकिक प्रतिभा से महाराजा बहुत ही प्रभावित हुए। उन्होंने आचार्य श्री से कहा :
‘भगवंत, मेरे मन में एक जिज्ञासा जगी है, यदि आप की इजाजत हो तो मैं मेरी जिज्ञासा व्यक्त्त करुं ?’
‘राजन, तुम अपनी जिज्ञासा कर सकते हो ।’
दो पल खामोश रहकर, महाराजा ने आचार्य श्री की आंखों में अपनी आंखों से झांकते हुए पूछा :
‘भगवंत, मैंने जाना है कि आप गुहस्थाश्रम में राजकुमार थे । आपके पास राजवैभव था, विपुल संपति-समृद्धि थी । आपका सौन्दर्य अदभुत है… यौवन है….। फिर भी आपको वैषयिक सुखों के प्रति विरक्ति कैसे जगी ? किसलिए इतना दुष्कर साधुव्रत अंगीकार किया ?’
आचार्य श्री विजयसेन के चेहरे पर स्मिर उभर आया । उन्होंने कहा : ‘राजेश्वर , इस संसार में वैराग्य होने का कारण पूछ रहे हो तुम ? राजन, इस दुनिया में , इस संसार में तो कदम कदम पर वैराग्य के निमित्त मिलते हैं । चाहिए….षउन्हें देखने की ज्ञानद्रष्टि । चाहिए अर्थपूर्ण चिंतन और वास्तविक अवलोकन ।
इस संसार में चार गति हैं । नरक , तिर्यंच , मनुष्य और देव । इन चारों गति में अनन्त अनन्त जीवात्मा जन्म लेते हैं…. और मरते हैं । जन्म और मुत्यु में उलझे हुए जीव अनन्तकाल से परिभ्रमण कर रहे हैं । यह जन्म और मुत्यु – संसार के यही दो बड़े दुःख हैं । इन दो दुःखों में फंसे हुए जीवों को सुख है ही कहां ?
–बिजली की चमक जैसी संपति….
–हवा के झोंकों जैसा यह जीवन…
–संध्या के रंगों जैसा यह यौवन….
पल भर में यह सब नष्ट हो जाता है…। ऐसे में ज्ञानी… समझदार मनुष्य सुख का अनुभव कर कैसे सकता है ? आनंद का अनुभव कैसे कर सकता है ?
‘राजन, यदि स्वस्थ चित से मनुष्य अपने आप को , अपनी आत्मा को तीन प्रशन पुछे तो उसका मन विरक्ति की और गति करेगा ही । उसका मन वेराग्यवासित होगा ही ।
*मैं कौन हूं ?
*किसलिए यहां मेरा जन्म हुआ है ?
*मुत्यु के बाद मेरा किस गति में जन्म होगा ?
फुर्सत के क्षण जब हों… तब ये प्रश्न तुम अपने आप से पूछना ।
और गुस्से में फनफनाते साँप के फैन जैसे विषय सुखों की भयंकरता के बारे में सोचना । शरदऋतु के बादल जैसे स्त्रियों के कटाक्षों की चपलता पर विचार करना । हाथी के कान जैसी संपति की क्षणिकता पर चिंतन करना । पेड़ के पते पर या फूलों की पती पर रही हुई ओस की बूंदों जैसे इस जीवन की क्षणभंगुरता पर गहराई से मनोमंथन करना । वैराग्य का दिया अपने आप जल उठेगा । मुझे भी इसी तरह के चिन्तन-मनन से ही वैराग्य जन्मा था ।
आगे अगली पोस्ट मे…