जब अन्य मुनियों को बालमुनि के अद्भुत पराक्रम का पता चला तो वे और भी अधिक वैराग्य वाले हुए और उन सभी ने अनशन व्रत स्वीकार कर लिया।
वज्रस्वामी को चलित करने के लिए किसी मिथ्यादृष्टि देवी ने आकार उपसर्ग करने प्रारंभ किए। किन्तु वज्रस्वामी लेश भी चलित नही हुए। आखिर देवी की अप्रीति को जानकर वज्रस्वामी अन्य स्थान पर गए और वहां पर क्षेत्र देवता का कार्योत्सर्ग कर अनशन कर लिया। अत्यंत ही समाधि पूर्वक कालधर्म को प्राप्त कर स्वर्ग में गए। इंद्र ने आकर उस स्थान पर तीर्थ की स्थापना की और उसे वंदन किया।
वज्रसेन स्वामी ने अपने शिष्य परिवार के साथ सोपारक नाम के नगर में पधारें। उस नगर में भयंकर दुष्काल के कारण अन्न की प्राप्ति अत्यंत ही दुर्लभ बनी हुई थी।
वज्रसेन स्वामी जिनदत्त श्रेष्ठि के घर पधारे। सेठ और सेठानी ने गुरु भगवंत को भावपूर्वक वंदना की। वज्रसेन स्वामी ने सेठ को विष घोटते हुए देखकर पूछा, यह क्या कर रहे हो?
सेठ ने कहा 12 वर्ष का भयंकर अकाल पड़ा हुआ है; धन देने पर भी थोड़ा भी अनाज नहीं मिल पा रहा है। एक लाख द्रव्य देकर इतना सा धान्य मिला है। अतः इस धान में विष मिलाकर परिवार सहित प्राण त्याग करने की इच्छा है।
गुरुदेव ने कहा, तुम्हें प्राण त्याग करने की कोई आवश्यकता नहीं है, कल ही अनाज से भरे हुए वहान आ जाएंगे।
सेठ ने कहा, आपकी बात सत्य होगी तो मेरे चारों पुत्र दीक्षा अंगीकार कर लेंगे।
बस दूसरे ही दिन अन्न से भरे वाहनों के आगमन के समाचार मिल गए। प्राण बचने से सेठ बड़ा खुश हो गया। बाद में सेठ ने अपने चारों पुत्रों के साथ भागवती दीक्षा अंगीकार कर दी। आगे चल कर चारो पुत्र शास्त्र पारगामी बने। वे चारों नागेंद्र चंद्र, विद्याधर और निवृत्ति आचार्य बने। नागेंद्र आदि आचार्य से चार शाखाएं निकली। आज भी सोपरक नगर में उन चारों की मूर्तियां विद्यमान है।