राजसेवक ने कहा ,’शकटाल मंत्रीश्वर की अकाल – मृत्यु के बाद मंत्री पद का स्थान रिक्त बना हुआ है, जब महाराजा वह पद श्रीयक को देने लगे, तब श्रीयक ने वह पद लेने से इन्कार करते हुए कहा , ‘इस पद के लिए मेरा ज्येष्ठ बंधु अधिक योग्य है । ‘ अत:इस पद को ग्रहण करने के लिए महाराजा ने आपको याद किया है।’
स्थूलभद्र ने पूछा ,’क्या मेरे पिता की मृत्यु हो गई है?
‘हाँ! जी!’
‘मृत्यु कैसे हुई?’
स्थूलभद्र के पूछने पर राजसेवक ने वररुचि के षड्यंत्र की सारी बात बतला दी।
‘माया -कपट से भरी राजनीति ने मेरे पिता के प्राण ले लिये ‘-यह जानकर स्थूलभद्र के दिल को बड़ा धक्का लगा। राजा की आज्ञा होने से स्थूलभद्र तत्काल खड़ा हक गया और उसने कोशा के पास राजमहल में जाने की अनुमति मांगी।
कोशा ने कहा,’ स्वामीन! आपके बिना मेरा प्राणाधार कौन?’
‘प्रिये!तूं निश्चित रह, मुझे राजनीति की गंदी जाल पसंद नहीं है, मैं किसी भी उपाय से छुटकारा पाकर शीघ्र ही वापस लौट आऊंगा।’
‘स्वामिन!आपके वियोग की प्रत्येक क्षण मेरे लिए असहा है।आपके वियोग की एक – एक पल मेरे लिए वर्ष जितनी लंबी होगी…. अतः मेरी आपसे यही नम्र प्रार्थना है कि आप राजनीति के जाल में फंसे बिना शीघ्र ही वापस लौट आना।’
‘प्रिये,तेरे दिल की वेदना को मैं अच्छी तरह से जानता हूँ । कमल के समान कोमल तेरे ह्रदय को लेश भी चोट पहूँचना , मुझे कतई पसंद नहीं है. परंतु एक राज-आज्ञा के खातिर मुझे वहां जाना पड़ रहा है। मैं तुझे विश्वास दिलाता हूँ कि अपने वियोग का काल थोड़ा भी लम्बा नही होगा।’
इस प्रकार कोशा वेश्या को आश्वासन देकर स्थूलभद्र तेजी से राजमहल की ओर आगे बढ़े। कुछ ही देर में वह राजमहल में आ पहुँचे।
राजा ने उसकी बलिष्ट व नष्ट-पुष्ट काया, गौरवर्ण , और तेजस्वी मुख -मंडल देखा । उसकी बाह्य -प्रतिभा के साथ ही उनका व्यक्तित्व भी उतना ही आकर्षक था।