भोगो से होने वाली तृप्ति क्षणिक होती है। जिस प्रकार खुजली के दर्दी को खुजलाने पर पहले आनन्द की अनुभूति होती है, परन्तु बाद में तो खुजलाने से होने वाली पीड़ा से पछताना ही पड़ता है। बस, इसी प्रकार व्यक्ति ज्यों-ज्यों इन भोग सुखों का अनुभव करता जाता है, त्यों-त्यों भोग संबन्धी उसकी भूख दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है।
जिस प्रकार कितना ही भोजन करने पर भी भस्मक के रोगी को तृप्ति का अनुभव करने पर भी आत्मा को कभी तृप्ति नही होति है।
बारह बारह वर्षों तक वेश्या के संग में रहने पर भी स्थूलभद्र अतृप्त ही था।
मंत्रिपुत्र श्रेयक वय में छोटा होने पर भी अपने कर्तव्य पालन के प्रति अत्यंत ही जागरूक था, इसके परिणाम स्वरूप उसने नंदराजा का विश्वास प्राप्त किया। नन्द राजा ने उसे अपना अंगरक्षक बना दिया।
उसी नगर में वररुचि नाम का ब्राह्मण पंडित रहता था। उसके पास अद्भुत कवित्व शक्ति थी। राजा की कृपा प्रसादी पाने के लिये वह प्रतिदिन नए नए 108 काव्यों की रचना करता और राजसभा में जा कर वे काव्य राजा को सुनाता।
मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा नही करना चाहये। मिथ्यादृष्टि की आम सभा में प्रशंसा करने से मिथ्यामत को प्रोत्साहन मिलता है’ – इस आशय से शकटाल मंत्री कभी भी वररुचि के काव्यों की प्रशंसा नही करता था। परिणाम स्वरूप वररुचि को राजा की और से ईनाम नही मिल पाता था क्योंकि अधिकांशतः राजा, मंत्री के संकेतानुसार ही प्रवत्ति करते होते है।
वररुचि को इनाम नही मिलने के रहस्य का पता लग गया , अतः एक दिन उसने मंत्री की पत्नी को खुश करने के उपाय ढूंढ निकाला। आखिर , किसी उपाय द्वारा वररुचि ने मंत्री की पत्नी को खुश कर दिया ।
‘मेरे योग्य कोई कार्य हो तो कहना’ – इस प्रकार मंत्री पत्नी के पूछने पर वररुचि ने इतना की कहा , ‘तुम्हारा पति(मंत्री) राजा के सामाने मेरे काव्यों की प्रशंसा करे।’
मंत्री पत्नी ने वररुचि को आश्वासन देते हुए कहा, तुम्हारा काम हो जायेगा । इस बात को सुनकर वररुचि खुश हो गया । मंत्री पत्नी ने अपने पति के सामने वह बात रखी ।
मंत्री ने कहा , वह ब्राह्मण मिथ्या दृष्टि है, इसी कारण मै उसके काव्य की प्रशंसा नही करता हूँ।
…… परन्तु पत्नी के आग्रह के कारण आखिर मंत्री को झुकना पड़ा और राज सभा में उसे वररुचि के काव्यों की प्रशंसा करनी पड़ी।