यह पद्य उन्होंने अनेक बार दुहराया।
दीक्षित शय्यंभव यज्ञ शाला के द्वार के पास बैठा हुआ था ।जैन मुनियो के मुख से इस पद्य को सुनकर शय्यंभव ब्राह्मण सोचने लगा , ‘अहो! उपशम प्रधान ये साधु कभी भी असत्य भाषण नही करते हे ; अतः लगता हे की अभी तक हमने सत्य तत्व को प्राप्त नही किया है।’
शय्यंभव ब्राह्मण सन्देह के झूले में झूलने लगा । उसने तुरन्त की उपाध्याय को बुलाकर पूछा ,’कृपया मुझे बतलाये की वास्तविक तत्व क्या है?’
उपाध्याय ने कहा ‘स्वर्ग और अपवर्ग को प्रदान करने में समर्थ ये वेद ही परम तत्व है; इनसे अतरिक्त कोई तत्व नही है।’
शय्यंभव ने कहा ‘यज्ञ की दक्षिणादि के लाभ से तुम लोग हमारे जेसो को ठग रहे हो , क्योकि राग द्वेष से रहित ,निर्मम, निष्परिग्रही ये जैन मुनि कभी असत्य नही बोलते है । तुम लोग वास्तविक गुरु नही हो। तुम लोगो ने दुनिया को ठगने का काम ही किया है; अतः तुम शिक्षा के पात्र हो । यदि तुम सत्य तत्व नही बतालाओगे तो मेरी यह तलवार तुम्हारे मस्तक को धड़ से अलग कर देगी ‘।
उपाध्याय ने जब आपकी आँख के सामने मौत को घूमती हुई देखा तो वह भी भय के मारे काँप उठा और सोचा ; अब सत्य तत्व प्रगट करने में ही मेरा ही मेरा हित है; इस प्रकार विचार कर बोला , ‘इस यज्ञस्तम्भ के नीचे अरिहंत की रत्नमयी प्रतिमा रही हुई है। गुप्त रीति से प्रतिदिन उसका पूजन होता है और उसी के प्रभाव से हमारा यज्ञादी अनुष्ठान निर्विध्न पूर्ण होता है। यदि वह प्रतिमा नही होती तो विघ्न पैदा हुए बिना नही रहते।’
उसी समय उपाध्याय ने यज्ञ स्तम्भ को उखाड़ा और उसके नीचे रही हुई रत्नमयी अरिहंत की प्रतिमा बतलाकर कहा ,’जिस अर्हत की यह प्रतिमा है, उसके द्वारा निर्दिष्ट धर्म ही परम तत्व है। अन्य यज्ञ आदि तो सिर्फ विडम्बना मात्र है । अरिहंत परमात्मा के द्वारा निर्दिष्ट जीवदयात्मक धर्म ही सच्चा धर्म है और जिस यज्ञ में पशुओं की हिंसा रही हुई है , वहा धर्म कहा से हो? हम तो माया जाल करके जी रहे है…..तुम तत्व को जानो और अपना कल्याण साधो । अपने पेट की पूर्ति के लिए मेने निरर्थक ही तुम्हे ठगा है; अब में तुम्हारा वास्तविक उपाध्याय नही हु।,’