कुछ भी असम्भव नही है। इस पूरे जीव लोक में, सर्वत्र कषायों का साम्राज्य छाया हुआ है। अग्निशर्मा के पास ज्यादा देर बैठना उचित प्रतीत नही होने से तापस वहां से खड़े हुए और कुलपति के आवास की और चल दिये। व्रद्ध तापस ने कहा कुलपति आज की इस ताजा घटना से अनजान होंगे। इसलिए उन्हें इस बात की जानकारी हम दे दे। तापस लोग आनन फानन पहुंचे कुलपति के आवास पर आवास में प्रवेश कर के, विनयसह प्रणाम करके निवेदन किया। पूज्यवर, महातपस्वी अग्निशर्मा आज भी पारणा किये बगैर वापस लौट आये हैं एवं अपने स्थान पर बैठे है। कुलपति व्याकुल हो उठे उनके चेहरे पर ग्लानि, चिंता और खेद की रेखाएं उभर आई। आँखों मे डर के साये उतर आये। किसी अज्ञात अनर्थ की आशंका से वे सिहर उठे। तुरंत वे अग्निशर्मा के पास पहुंचे। कुलपति को अपनी और आते हुए देखकर अग्निशर्मा अपने आसन से खड़ा हुआ। उसने कुलपति का पूजा सत्कार किया। कुलपति ने पुछा वत्स, क्या आज भी तेरा पारणा नही हुआ ? उफ्फ, राजा गुणसेन का कितना अनुचित एवं प्रमादयुक्त आचरण है? कुलपति ने सहानुभूति जतलाते हुए कहा। भगवंत, राजा लोग प्रमादी होते ही हैं।इसमें उसका क्या दोष है ? वास्तव में गलती तो मेरी ही है। मेने आहार की इच्छा रखी इसलिए उनके वहाँ पारणा करने के लिए जाने का प्रसग आया। और उसने जान बूझकर मेरा पराभव किया। पराभव की जड़ है आहार की सपृहा। इसलिए अभी अभी मेने जीवन पर्यन्त आहार का त्याग कर दिया है। मेने अनशन व्रत स्वीकार कर लिया है।इसलिए आपसे प्रर्थना है करता हूँ कि इस विषय मैं मुझे आप किसी आज्ञा से बाध्य न करे। कुलपति ने कहा वत्स यदि तूने जिंदगी की अंतिम घड़ी तक के लिये अनशन-आहार तयाग करने की प्रतिज्ञा ले ही ली है, फिर और कुछ कहने या और कोई आज्ञा करने का मतलब ही नही रहता है। परन्तु वत्स तपस्विजन ग्रहीत प्रतिज्ञा का पालन पूरी दृढ़ता के साथ करते है। तू तेरी प्रतिज्ञा का पालन दृढता से करना। एक बात ध्यान रखना। राजा गुणसेन के प्रति द्वेष मत करना। सभी जीवात्मा पूर्व कृत कर्मो के मुताबिक ही फल प्राप्त करते हैं। लाभ और नुकसान में दूसरे जीव तो निमित्त मात्र होते हैं। कुलपति खड़े हुए। वहाँ पर उपस्थित तापसौ में से दो तापसौ को अग्निशर्मा की सेवा में नियुक्त कर के वे अपने स्थान पर लौट गये। तपोवन मै सन्नाटा छा गया था। सभी तापस उदासी के स्याह अंधेरे में डूब गए थे। कुछ तापस शून्यमनस्क होकर कुलपति की पूर्णकुटी के बाहर बैठ गये थे।कुछ तापस तपोवन के द्वार पर जाकर अभी राजा खुद आयेंगे सोचकर राजा की प्रतीक्षा करने लगे। न तो कोई जाप कर रहा है ना किसी का ध्यान लग रहा है। न कोई अध्ययन कर पा रहा है। संताप ओर बेचैनी के बोझ तले सभी जैसे सिसक रहे थे।
आगे अगली पोस्ट मे…