Archivers

राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 1

विशाल साम्राज्य के पालन की जिम्मेदारी ने, राजा गुणसेन के यौवनसहज औद्धत्य उन्माद और अविवेक को नामशेष कर दिये थे। प्राज्ञ, प्रौढ़ और अनुभवी मंत्रीयों के सतत संपर्क एवं सानिध्य से राजा गुणसेन भलीभांति परिपक्व हो रहे थे । माता-पिता के अरण्यवास से, अग्निशर्मा के अद्रश्य हो जाने से, पुरोहित एवं उनकी पत्नी की अकाल मृत्यु से, राजा गुणसेन के मन पर गहरे प्रत्याघात छाये थे ।
– महारनी वसंतसेना कमलवदना, कोकिलवचना और कुमुदनयना सन्नारी थी। वह वि़धाव्यासंगी और पापभीरू रानी थी। राजा गुणसेन के दिल को उसने जीत लिया था। धर्ममार्ग में रानी राजा की प्रेरणामूर्ति बनी हुई थी।
प्रतिपूर्ण और पराक्रमी मित्रों ने राजा गुणसेन की विजययात्राओं में साथ-सहयोग देकर उसे विशाल साम्राज्य का सम्राट बनाया था ।
– बुद्धिधन और वफादार मंत्रियों ने सही-सच्ची और समुचित सलाह-मार्गदर्शन देकर, राजा गुणसेन के निर्मल यश को दिगंतव्यापी बनाया था। राजा के धनभंडारों को छलका दिये थे। – नम्रता, उदारता, क्षमा, न्यायप्रियता, इत्यादि गुणों के माध्यम से राजा गुणसेन ने प्रजा का असीम प्यार व हार्दिक स्नेह प्राप्त किया था।
-‘महाविदेह’ क्षेत्र की वह पुण्यभूमि थी ।
-लाखों….. करोड़ों बरसों के, मनुष्यों के दीर्धकालीन आयुष्य थे ।
-विराट-विशाल और सुंदर शरीर थे उन राजा-रानी के ।
-शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के ऐन्द्रिक सुख भी उच्च कोटि के थे ।
काल के धॅुआधार प्रावह में काफी कुछ बह जाता है । काफी कुछ नामशेष रह जाता है…. तो काफी कुछ विस्मृति की गहरी खाई में दब जाता है ! गुणसेन की विस्मृति की गहरी खदक में अग्निशर्मा दब गया था । लाखों बरसों की मिट्टी उस पर बिछ गई थी । खाई-खाई नही रही थी, उस पर से घटनाओं का सिलसिला राजमार्ग बनकर गुजर रहा था। लाखों वर्ष पुरानी बातें करनेवाले…… गडे मुर्दे उखाडने वाले परलोक यात्री बन चुके थे । गुणसेन के समकालीन स्त्री-पुरूषों के लिए भी अग्निशर्मा पुर्णतया विस्मृत हो चुका था ।
हालांकि, जब तक महाराजा पूर्णचन्द्र एवं रानी कुमुदिनी तपोवन में आत्मसाधना में लीन थे, तब तक अक्सर परिजनों के साथ गुणसेन, वसंतसेना उनकी कुशल पृच्छा करने के लिए तपोवन में जाते थे । तपोधन राजर्षि पूर्णचन्द्र, राजा गुणसेन को धर्म-अर्थ और कामपुरूषार्थ के विषय मे समुचित मार्गदर्शन देते थे। इससे तीनों पुरूषार्थ मे राजा ने संतुलन बनाये रखा था। राजर्षि पुर्णचन्द्र, गुणसेन के लिए केवल पिता ही नहीं थे, वरन् सद्गुरू भी थे। गुणसेन उनकी प्रत्येक बात को ह्रदयस्थ करता था।

आगे अगली पोस्ट मे…

अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 9
February 14, 2018
राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 2
February 14, 2018

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers