सुरसुन्दरी ने सर्वप्रथम अमरकुमार का परिचय करवाया इसके बाद गुणमंजरी…. माता-पिता… धनावह सेठ… धनवती सभी का परिचय करवाया ।
महाराजा रिपुमर्दन ने नगर में पधारने के लिये रत्नजटी से विनती की । काफी जोर शोर से रत्नजटी के परिवार का स्वागत किया । रत्नजटी ने राजमहल में पहुँच कर राजा रिपुमर्दन और श्रेष्ठि धनावह से विनती की:
‘हे पूज्यवर, इन दंपत्ति का दीक्षामहोत्सव करने की मुझे अनुज्ञा दीजिये ।’
रत्नजटी को अनुज्ञा मिल गई । उसने विद्याधरों को आज्ञा करके चंपानगरी को इन्द्रपुरी सा बना दीया । रत्नजटी की चारों रानियाँ तो सुरसुन्दरी को घेर कर ही बैठ गयी । बेनातट नगर में बनी हुई तमाम घटनाएं सुरसुन्दरी ने कह सुनाई…। पुरुषरूप में सुरसुन्दरी के साथ शादी की बात सुनकर तो रानियां खिलखिलाकर हंस पड़ी ! गुणमंजरी को भी हर एक रानी ने प्यार से सराबोर कर दिया ।
दीक्षा-महोत्सव काफी भव्यता से मनाने की सभी तैयारियां हो चुकी थी । इतने में बेनातट से महाराजा गुणपाल और रानी गुणमाला भी आ पहुँचे परिवार के साथ में । महाराजा रिपुमर्दन और श्रेष्ठि धनावह ने बड़े प्रेम से उनका भव्य स्वागत किया ।
गुणमंजरी ने स्वयं ही अपने माता-पिता के मन का समाधान कर दिया । रत्नजटी का परिचय करवाया । राजा गुणपाल भी रत्नजटी से मिलकर अति प्रसन्न हुए । रत्नजटी ने सुरसुन्दरी की दिल खोल कसर प्रशंसा की । राजा गुणपाल भी सुरसुन्दरी के अनेक गुण याद करते करते गदगद हो उठे । विमलयश के रूप को याद करके सभी हंस पड़े । गुणमाला ने रत्नजटी ने कहा :
‘हे नरेश्वर, गुणमंजरी को एक भी भाई नही है…. तुम….।’
‘आज से गुणमंजरी मेरी बहन है राजन ! इसकी आप किसी भी प्रकार की चिंता मत करना ।’
‘नाथ, तो फिर भानजे का नामकरण कर डाले क्या ?’
चारों रानियों ने पूछा :
‘जरूर करो…।’
‘उसका नाम ‘अक्षयकुमार’ रखे !’
‘वाह ! बहुत सुन्दर नाम रखा !’ राजा रिपुमर्दन प्रसन्न हो उठे । उन्होंने कहा :
‘मेरे बाद चंपा का राजा अक्षयकुमार होगा !’
सभी ने जयजयकारा किया । सभी अपनी अपनी प्रव्रर्तियों में व्यस्त हो गये ।
आगे अगली पोस्ट मे…