Archivers

बिदाई की घड़ी आई । – भाग 7

राजा-रानी दोनों अमरकुमार के महल पर आये । अमरकुमार और सुरसुन्दरी इस बड़े आदर सत्कार किया । ‘कुमार, मैने मृत्युंजय को सूचना दे दी है… तुम्हारी चंपा यात्रा की जिम्मेदारी उसी को सुपुर्द की है। तुम्हारे 32 जहाजों को सुसज्ज कर दे… और साथ में अन्य 10 जहाज भी तैयार करें । मृत्युंजय स्वयं सौ सेनिको के साथ चंपानगरी साथ आयेगा । उसकी भी प्रबल इच्छा है तुम्हारे साथ आने की ।’ महाराजा ने सुरसुन्दरी के सामने देखकर कहा  :

‘बेटी, तेरे बिना तो अब जीना भी कैसा लगेगा ? तेरे विरह का दुःख कैसे सहा जायेगा ?  तेरे कारण तो मेरा नगर समृद्धि के शिखर पर पहुँचा । तू तो वास्तव में उत्तम आत्मा है।  तू थी तो हमारे में भी कितने गुण आ गये तेरे सहवास से । न जाने किस जनम का पुण्य था हमारा की तू हमें मिली । तेरे साथ स्नेह बंध गया…. प्रीत लग गई…. पर अब क्या होगा  ? दिन कैसे बीतेंगे….? किसको देखकर दिल बहलायेंगे….? किसे पूछ कर अब कार्य करेंगे….? किसके मुँह से मीठे   बोल  सुनेंगे—-? बेटी… तू तो चली जायेगी हम सब को छोड़कर, पर हमारा जीना दुष्वार हो जायेगा  !’

सुरसुन्दरी फफक कर रो दी । उसने महाराजा के चरणों में अपना सर रख दिया । महाराजा गुणपाल की आँखें रो रो का लाल हुई जा रही थी । गुणमंजरी भी सिसक रही थी । महारानी ने गुणमंजरी को अपनी गोद मे खींच ली । अमरकुमार से यह करुणा दृश्य देखा नही गया । वह अपने कमरे में जा कर पलंग पर गिरता हुआ रो पड़ा । सारा महल शोक–परिताप… वेदना… और आंसुओं से भर गया । रानी गुणमाला ने भर्रायी आवाज में कहा  :

‘प्यारी बेटी, मेरी लाडली बेटी, मैने तुझे कभी रूठी हुई देखी नहीं है । मैने सदा तेरा हँसता-खेलता फूल  गुलाबी चेहरा देखकर मेरे इतने बरस सुख से गुजारे है । तू तो मेरी जिंदगी है—मेरी साँसों का तार है—मेरा सर्वस्व है…..

बेटी, मेरी लाडली, कुछ बातें कहती हूं तुझसे से, उन बातों का पालन करना । बेटी, कभी भी श्री नवकार मंत्र को भूलना मत। पंचपरमेष्ठी भगवन्तों का ध्यान करना । तेरे दिल मे धर्म की स्थापना करना । तू ससुराल जा रही है…. तो वहां के कुलाचारों का सुन्दर ढंग से पालन करना ।

गृहस्थजीवन का श्रृंगार है दान । अनुकंपा दान देना । सुपात्र को दान देना । बेटी,  घर पर आये हुए किसी का तिरस्कार मत करना । किसी को तुच्छकारना नहीं । घर के सभी बड़ो का विनय करना । छोटो के प्रति प्रेम रखना ।और सभी को भोजन करवा कर बाद में भोजन करना ।

कभी भी असत्य मत बोलना । कटु वचन किसी से कहना मत। कभी किसी पर गलत इल्जाम मत मढ़ना । सच बोलना…. मीठा-मधुर बोलना…. कम बोलना, हमेशा सोच विचार कर बोलना ।

‘बेटी…. कभी दुर्जनो का संग मत करना । मिथ्यादृष्टि लोगों की बातें मत सुनना । घर में सभी को निर्मल दृष्टि से देखना । ज्यादा कहूं  ? मेरी प्यारी बेटी, इस ढंग से जीना की दोनों पक्ष की-ससुराल-पीहर की शोभा बढ़े…. और बेटी…. जल्दी जल्दी तेरा मुखड़ा वापस दिखाना… मेरी लाडली—-गुणु बेटी’….. रानी गुणमाला गुणमंजरी को अपने सीने से लगाते हुए रो दी। !

आगे अगली पोस्ट मे…

बिदाई की घड़ी आई । – भाग 6
November 3, 2017
बिदाई की घड़ी आई । – भाग 8
November 3, 2017

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers