सुरसुन्दरी ने गुणमंजरी को अपनी माँ रानी रातिसुन्दरी का परिचय दिया । पिता रिपुमर्दन राजा की पहचान दी । प्यारभरी सासु धनवती के गुण गाये । ससुरजी श्रेष्ठि धनावह का परिचय दिया । चंपानगरी के बारे में बातें बतायी…. और धीरे धीरे सुरसुन्दरी अपने बचपन की यादों के दरिये में खींच ले गयी गुणमंजरी को । जी भरकर दोनों बतियाने लगी ! अमरकुमार आंखे मूंदकर सुरसुन्दरी के उदात्त और उन्नत व्यक्तित्व को आंकने लगा । उसे अपना व्यक्तित्व छिछला लगा… उथला लगा… ! ! !
‘महाराजा, बेनातट में काफी दिन गुजर गये….।समय इतना जल्दी गुजरा… कुछ पता ही नही पड़ा । अब आप इजाजत दें तो हम चंपानगरी को ओर प्रयाण करें । माता पिता से मिलना भी जरूरी है। बारह बारह बरस बीत चुके है। इस बीच कितना कुछ बन चुका… बिगड़ चुका। अब तो जल्द से जल्द मन माता-पिता को देखने के लिए बेताब हो रहा है !’
अमरकुमार ने महाराजा गुणपाल के समक्ष अपनी मानो कामना व्यक्त की ।
‘कुमार, स्नेह के रिश्ते में बंध जाने के बाद, मन जुदाई की पीड़ा महसूसने से कतराता है । पर दुनिया का भी तो रिवाज है….’बेटी तो ससुराल में ही…’ उस व्यवहार का उल्लंघन करना भी मै नही चाहता !’
महाराजा का दिल भर आया । वह ज्यादा कुछ भी बोल नही पाये । अमरकुमार ने भी ज्यादा कोई बात नही छेड़ी ।
महाराजा गुणपाल ने महारानी से बात की । बेटी के वियोग की कल्पना से ही रानी दुःखी दुःखी हो उठी । राजा-रानी दोनों उदास हो गये। फिर भी बेटी को विदा तो करना ही था….। आज नही तो कल….! राजा-रानी ने सीने पर पत्थर रख कर तैयारियां प्रारंभ करवा दी ।
अमरकुमार ने भी प्रयाण की तैयारी चालू की । नगर में बात फैलते देर नहीं लगी कि ‘अमरकुमार सुरसुन्दरी और गुणमंजरी के साथ चंपा की ओर प्रयाण करनेवाले है !’ पूरे बेनातट में मानो बिजली गिरी । लोगों के लिये बड़ा अजीब वातावरण खड़ा हो गया । वैसे भी उनका चहेता विमलयश चला गया । अब सुरसुन्दरी… गुणमंजरी भी चली जायेगी । लोगों के टोले के टोले आने लगे मिलने के लिये.. मनाने के लिये !
‘मत जाओ हमारे राजकुमार…. मत जाओ हमारी राजकुमारियाँ…. तुम्हारे बिना यह बेनातट बेजान हो जायेगा । यह हंसता खिलता बाग सदा सदा के लिये मुरझा जायेगा ! ! !
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