महारानी ने कमरे में प्रवेश किया । कमरे का दृश्य देखकर उनका दिल खुशी के मारे भर आया । उनकी आंखें छलक आयी । उन्हें लगा कि ‘मेरी बेटी सुरक्षित हाथों में है ।’
वसंतपंचमी के शुभ दिन गुणमंजरी की शादी अमरकुमार के साथ धूमधड़ाके से हो गयी । महाराजा ने गुणमंजरी को ढेर सारी संपत्ति दी । आखिर एकलौती बेटी थी…. लाडली थी…. जान से भी ज्यादा प्यारी थी !
अमरकुमार गुणमंजरी और सुरसुन्दरी के साथ अपने महल पर आया। महल में भी सभी से मिलकर आंनद का उत्सव मनाया ।
सुख में दिन को पंख लग जाते है । समय इतनी जल्दी से सरकता रहा जैसे कि चट्टान पर से बहता पानी ! अमरकुमार दोनों पत्नियों के साथ सुख भोग में डूबा है …। एक दिन दोनों पत्नियों के साथ रथ में बैठकर वह समुद्र के किनारे पर घूमने के लिये गया । वहां किनारे पर उसने अपने जहाज लंगर डालकर पड़े हुए देखे….। उसके मन मे यकायक चम्पानगरी की स्मृति हो आयी । माँ-पिताजी…. सब की याद मंडराने लगी दिल में ! उसने सुरसुन्दरी से कहा :
‘अब अपन चम्पा की तरफ कब प्रयाण करेंगे ?’
‘जब आपकी इच्छा हो तब !’
‘तो मै आज ही महाराज से बात करता हूं…..। वे इजाज़त दे, फिर अपन प्रयाण की तैयारी करें…।’
सुरसुन्दरी के मनोगगन में चंपा उभरी….माता-पिता, सास-ससुर की स्मृति उभरी । साध्वी सुव्रता की याद आ गई…। अपने आप उसके दोनों हाथ जुड़ गये… सर झुक गया ।
‘किसे प्रणाम कर रही हो आप ?’ गुणमंजरी ने सुरसुन्दरी के दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए पूछा । सुरसुन्दरी ने गुणमंजरी के सामने देखा :
‘मेरी गुरुमाता को…. मंजरी !’
‘कौन है वे ?’
‘साध्वीजी है…। उनकी आंखों में करुणा का झरना बहता है । उनकी वाणी में सुधा के नीर झरते है….। मुझे श्री नवकार मंत्र का स्वरूप उन्होंने ही समझाया था !
रहस्य भी उन्होंने ही बताया था । श्रद्धा की अखूट और अटूट ताकत भी उन्होंने दी थी !’
‘अपन को चंपा में उनके दर्शन होंगे ?’
‘यदि अपनी खुशकिस्मती होगी तो ! अन्यथा जिनशासन के श्रमण-श्रमणी एक स्थान पर रहते नहीं है । बिचरते रहते है । घूमते रहते है….। यदि अपन को मालूम पड़ेगा तो अपन वह जहां भी होंगे वहां चलेंगे । उन्हें वंदना करेंगे । मै तो उनका ऋण कभी अदा नही कर सकती । यदि उन्होंने मुझे नवकार मंत्र नही दिया होता तो ?’ सुरसुन्दरी की आवाज भावुकता से भीगने लगी थी
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