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बिदाई की घड़ी आई । – भाग 4

सुरसुन्दरी ने यक्षद्वीप पर की बातें विस्तार से अमरकुमार को सुनायी । यक्षराजा के उपकारों का वर्णन करते करते तो वह गदगद हो उठी । इतने में राजमहल से बुलावा आ गया । दोनों तैयार होकर राजमहल में पहुँचे । महाराजा ने प्रेम से दोनों का स्वागत किया । महारानी भी वही बैठी हुई थी । सुरसुन्दरी ने महारानी के चरणों में नमस्कार किया । अमरकुमार ने भी सर जुकाकर नमस्कार किया । महारानी ने अमरकुमार को गौर से देखा । रानी का मन प्रसन्न हो उठा ।

‘कुमार, राजपुरोहित ने शादी का श्रेष्ठ मूहुर्त वसंत पंचमी का दिया है । यानी आज से पाँचवे दिन शादी करने की है ।’

‘सुन्दर…. बहुत बढ़िया… दिन भी निकट का ही है  ।’ सुरसुन्दरी बोल पड़ी

‘राजपुरोहित कह रहे थे कि दिन श्रेष्ठ है   ।’

‘गुणमंजरी को बताया मुहूर्त के बारे में  ?’  सुरसुन्दरी ने पूछा  ।

‘नही… उसे अब खबर दूंगा  ।’

‘ठीक है… तब तो… मै उसी के पास जा रही हूं । मुहूर्त की सूचना भी दे दूं। मिल भी आऊं । आप यहीं पर बातें कीजिये । मै अभी आयी ।’ सुरसुन्दरी वहां से खड़ी होकर गुणमंजरी के कमरे में पहुँच गयी । गुणमंजरी ने प्यार से स्वागत किया । दोनों पलंग पर बैठे ।

‘शादी का मुहूर्त निकल गया है मंजरी  ! वसंत-पंचमी का  !’

‘मेरे मन तो शादी हो ही गई है  ! अब तो मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता है यहां  ।’

‘अरे पगली… अब तो केवल पांच दिन का सवाल है  ।’

‘मेरे लिये तो पांच दिन भी पांच साल जितने है,  इसका क्या  !’

‘तो फिर कल से मै यहां आ जाऊं  ?’

‘अरे, वाह  !  तब तो तुम मेरे सर आंखों पर… लेकिन बाद में उनका क्या  ? उन्हें तो तुम्हारे बगैर….! ! !’

‘ओफ्फोह… बारह बरस गुजार दिये मेरे बगैर, तो फिर पांच दिन ज्यादा!  क्या फर्क पड़ेगा  ?’

‘अरे…. बारह बरस बिता दिये वह बात छोड़ो…अब तो एक दिन क्या, बारह घंटे भी बिताना मुमकिन नहीं है ।’

‘मंजरी तूने उनको देखा है सही  ?’

‘बिल्कुल, चोर के रूप में जब पकड़वा कर मंगवाये थे तब देखे थे न ?  ?’ दोनों खिलखिलाकर हंस दी । मुँह में आंचल दबाये दोनों देर तक हंसती रही ।

आगे अगली पोस्ट मे…

बिदाई की घड़ी आई । – भाग 3
November 3, 2017
बिदाई की घड़ी आई । – भाग 5
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