विमलयश ने राजसभा मे बैठे हुए
तस्कर को इशारा किया । तस्कर खड़ा हुआ… ओर महाराजा के सामने आकर नतमस्तक होकर
खड़ा रहा।
पलभर के लिए तो सन्नाटा छा गया ! पूरी सभा के मुह से ‘अरे !’ निकल गया । चूंकि
सबने किसी डरावने–भयावह चहरेवाले दैत्याकार व्यक्ति के रूप में चोर की कल्पना
कर रखी थी ! जबकि सामने तो सुंदर-सलोने चेहरेवाला युवान खड़ा था ! महाराजा भी
विस्मय से स्तब्ध रह गये । उन्होंने विमलयश से पूछा : ‘कहो कुमार, इस तस्कर
के अंसख्य अपराधों की सजा दूँ ?’
‘महाराजा, मेरी आपसे एक विनती है ।’
‘बोलो…., बिना कुछ भी झिझक के…. तुम जैसा चाहोगे वैसा ही होगा ।’
‘मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप तस्कर को अभयदान दे दे !’
‘अभयदान…. इस दुष्ट को ?’ सभाजनो की दबी दबी आवाज उभर उठी !
‘हा, अभयदान ! अब से वह चोरी नही करेगा । चोरी किया हुआ धन उनके मालिको को
वापस लौटा दिया जाएगा । और वह स्वयं इस राज्य का सेवक बनकर रहेगा ।’
विमलयश ने तस्कर के सामने सूचक निगाहों से देखा । तस्कर जिसका नाम मृत्युंजय
था , उसने महाराजा और विमलयश को प्रणाम करके कहा :
‘महाराजा, वास्तव में मै अपराधी हुँ…. मैंने अक्षम्य अपराध किये है । सचमुच
में वध्य हुँ…परन्तु मेरे पर राजकुमार विमलयश के परम उपकार करके मुझे
अभयदान– जीवनदान दिलवाया है…. मै मृत्युंजय, आज से प्रतिज्ञा करता हु की मै
आपको, राज्य को पूरी निष्ठा से वफादार रहुगा ! आप जो भी सेवा की आज्ञा मुझे
करेंगे मै उसे हर हमेश अदा करूँगा ।’
महाराजा ने विमलयश की तरफ देखा । विमलयश ने कहा :
‘महाराजा, मृत्युंजय राज्य की सेना का सेनापति होने के लिए योग्य है ।’
‘अच्छी बात है, मै मृत्युंजय को सेनापति का पद प्रदान करता हु !’
मृत्युंजय हर्षविभोर हो उठा । उसने महाराजा के चरणों मे सर झुकाकर प्रणाम किया
। विमलयश ने घोषणा की :
‘कल राजसभा में, मृतुन्जय सारा का सारा चोरी का माल लाकर हाजिर करेगा । जिनका
माल हो वे आकर ले जाये ।’
महाराजा ने राज्यसभा को सम्बोधित करते हुए कहा :
‘विमलयश यदि तस्कर की इस तरह कद्रदानी कर सकता है तब तो मुझे भी विमलयश की
कद्र करनी चाहिये… मेरे प्रिय प्रजाजनों, मेरी घोषणा के मुताबिक मेरा आधा
राज्य विमलयश को अर्पण करता हूं । ‘ राजसभा में ‘महाराजा विमलयश की जय हो’ के
नारे बुलंद हो उठे । ‘बड़ा योग्य सम्मान किया आपने महाराजा !’ महामंत्री ने
खड़े होकर विमलयश का अभिवादन किया ।
आगे अगली पोस्ट मे…