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चोर का पीछा – भाग 6

करीब पचास सीढियाँ उतरा की एक बड़े कमरे में वह आकर खड़ा रहा । कमरे को
चौतरफ से देखा … तो पूर्व दिशा में गुप्त द्वार सा कुछ लगा । उसने धक्का
मारा , दरवाजा खुल गया , भीतर में प्रवेश किया तो सामने ही ऊपर चढ़ने के लिये
सीढियाँ थी । वह कुछ देर रुका रहा । ऊपर से तस्कर की आवाज आ रही थी । किसी
स्त्री के रोने की आवाज भी थी । विमलयश ने अनुमान लगा लिया : ‘राजकुमारी यहीं
पर है ।’ उसका मन प्रसन्न हो उठा। कुछ आश्वस्त भी हुआ ।
वह एक ही सांस में सीढियाँ चढ़ गया तो बिल्कुल सामने राजकुमारी को बैठा हुआ
पाया । उसके सामने तस्कर खड़ा था । विमलयश अद्दश्य रूप से गुपचुप राजकुमारी के
निकट एक ओर कोने से खड़ा हो गया ।
उसने राजकुमारी को देखा …. उसका दिल रो पड़ा।
विमलयश चुपचाप राजकुमारी को देखता रहा …. राहुग्रस्त चन्द्रमा सी फीकी
उसकी मुखकांति । सूखे हुए फल से निष्प्राण होंठ… मरणासन्न हिरनी सी निस्पंद
आँखें ।
निराभरण राजकुमारी को देखकर विमलयश की आँखें भर आयी … ‘राजमहल में फूलों
के बीच पली हुई यह कली आज कितनी पीड़ा उठा रही है ? ‘ एक विचित्र अहसास भरी
पीड़ा से विमलयश का मन कसकने लगा… इतने में तस्कर चिल्लाया :
‘देख री छोकरी… ये खूबसूरत अलंकार किसके हैं ?’ तस्कर ने विमलयश के महल
में से उठाए हुए आभूषणों का ढेर राजकुमारी के आगे कर दिशा । आभूषणों पर विमलयश
का नाम अंकित था ।
‘ये आभूषण तो मेरे उस परदेशी राजकुमारी के है ।’
‘थे… अब नहीं है… पगली … वह खुद ही अब तो जिन्दा नहीं रहा ।’
‘क्या ?’ राजकुमारी चीख उठी ।
‘उसे यमलोक में पहुँचा पर उसका सारा धन मैं साथ लाया हूँ , बोल , अब तो
मेरी रानी होना कबूल है ना ? जिस पर तू मर रही थी वह तो कायर निकला… अरे…
मर ही गया समझ ले…।’
‘नालायक … दुष्ट … तेरे जैसे नीच खुनी का मैं चेहरा भी देखना नहीं
चाहती … और यदि तूने जो कहा वह सत्य है तो मै भी अब जीना नहीं चाहती । मैं
भी मेरे प्राणों का त्याग कर दूंगी ।’
‘क्यों री ? क्या उस परदेशी कुमार जैसा मेरा रूप नहीं है क्या ? उसके
जितनी सम्पति नहीं है क्या मेरे पास ? मेरे में क्या कमी लगती है तेरे को ?’
‘कमी ? तू तो काला कौआ है … उस हंस से परदेशी के आगे …. वह यदि कमल है तो
तू निरा धतूर है… शैतान है तू तो… खुनी….।’
‘चुप मर … तेरी जीभ लम्बी होती जा रही है …’ इस छुरी से काट डालूँगा ।’
तस्कर चिल्लाया और छुरी उठाये राजकुमारी की तरफ लपका ।
‘उसी समय तस्कर के सर पर जोरदार मुष्टि प्रहार हुआ… और वह …
‘हाय’… करता हुआ जमीन पर ढेर हो गया ।’
‘दुष्ट… अबला पर हाथ उठाकर अपनी ताकत बता रहा है … परदेशी राजकुमारी
परलोक में गया है कि साक्षात काल बनकर तेरे सामने खड़ा है … देख ले जरा ।’
और विमलयश अपने स्वरूप में प्रगट हुआ ।

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