विमलयश का हंसी के मारे बुरा हाल था।
जबरजस्ती अपने आप पर काबू पाते हुए उसने कहा :
‘मालती, नगर में इतना हंगामा मचा हुआ है और मुझे तो कुछ मालूम ही नही है ।’
कहा से मालूम होगा ? तुमने तो सात दिन से बाहर ही कदम कहा रखा है जो । तुम तो
बस दिन रात वीणा के पीछे पागल हुए हो…. उधर उस राजकुमारी को भी पागल बना
डाला ।’
‘चुप मर…. कोई पागल हो तो मै क्या करूँ ? मैं कोई उसे मजबूरन पागल बना रहा
हुँ क्या ? तू तेरे चोर की बात कर…. हाँ तो…बाद में क्या हुआ ? चोर पकड़ा
गया या नही ?’
‘चोर पकड़ा जाये ? अरे… उसे पकड़ने के लिए बगीचे के चौकीदार भीमा बहादुर ने
बेड़ा उठाया । भीमा तो सचमुच भीमा ही है। बड़ा पहलवान है। मै उसे जानती हूँ ।
चोर को इस बात का पता लग गया। उसने जोगी रूप रचाया। सर पर बड़ी भारी जटा….
इर चेहरे पर लंबी सफेद दादी …. गेरुए कपड़े पहने ! बगीचे में जा पहुँचे…
भीमा वैसे भी बेचारा भगत आदमी है । जोगी को देखा तो दौड़ता हुआ गया…. स्वागत
किया । बाबाजी से प्रार्थना की : बाबा मेरे घर पर भोजन करने के लिए पधारेंगे
?’ बाबा ने आंखे बंद की… ध्यान लगा कर कहा : ‘भीमा…तेरे घर पर भोजन करने
नही आ सकता मै !’
‘क्यो बाबा जी ?’
‘तेरी माँ जिंदा डायन है… वह रात को सोते हुए आदमी का खून चूस लेती है…
तेरे को भरोसा नही होता हो तो आज रात को पास में डंडा लेकर सोने का ढोंग करते
हुए खटिया पर लेटे रहना ।’ भीमा कुछ दुखी …. कुछ शंकाभरे दिमाग से चला गया ।
भीमा की माँ आयी बाबाजी को निमंत्रण देने के लिए भोजन का। बाबा ने उससे कहा :
‘तेरा बेटा तो शराबी है शराबी ! तेरे वहां कैसे भोजन लू ? तुझे परीक्षा करना
हो तो आज रात को जब वह सोया हुआ तो तब जाकर उसका मुंह सूंघना ।’ बुढ़िया बेचारी
भारी मन से चली गयी ।
आगे अगली पोस्ट मे…