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विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 7

रत्नजटि ने बेनातट नगर के बाहर उद्यान के एकान्त कोने में विमान को उतारा।
रानियों द्वारा विमान में रखे हुए वस्त्रालंकार बगैरह भी उसने बाहर निकालकर
सुरसुन्दरी के पास रखे।
रत्नजटि ने सुरसुन्दरी के सामने देखा। सुरसुन्दरी ने भी रत्नजटि की तरफ भरी
भरी आंखों से देखा।बहन… कैसे वापस लौटू? मेरे पैर नही उठ रहे हैं। इतने दिन
सुख में आनन्द में… बित गये… तु तो मेरे दिल में बस गई हों… बहना। न
जाने अब वापस कब तेरे दर्शन होंगे? कब तुझे देख पाऊंगा? तेरे साथ इतनी तो गाढ़
प्रीति बंध चुकी है कि आज तक तुझे देखकर तन-मन प्रसन्नता से पुलक उठते थे। अब
ठंड़ी आहो के अलावा अब और क्या बचा है? बहन वे दिन कैसे भूलेंगे ? ये दिन कैसे
गुजरेंगे ? सब याद आयेगा और आंखे बरसा करेगी… तेरे साथ की हुई
तीर्थयात्रा… तेरे साथ गुजारी हुई तत्वचिंतन की क्षणे. . तेरे मीठे-मधुर
बोल… तेरा निर्दोष- मासूम चेहरा सब यादे फरयाद बनकर मेरे दिल को चूर चूर कर
डालेगी। और जब भोजन के समय तुझे नही देखूंगा… सोच बहना मेरा क्या होगा ?तेरी
उन भाभियो पे क्या गुजरेगी ? वे तडपती रहेगी…।।
प्रीत का सुख तो सपना बनकर बह गया ……! अब तो दुःख का अन्तहीन दरिया ही रह
गया ……हमारे लिए ! ज्यादा क्या कहूँ मेरी बहन ! तू मेरे इस अशान्त ,
सन्तप्त और व्यथित भी को भुला मत देना ….. नही बहन भुलाना मत। कभी याद करके
एकाध बार तो तेरी कुशलता कक संदेश जरूर जरूर भिजवाना ।
रत्नजटि के दिल का बांध टूटा जा रहा था । उसके आंसू सुरसुन्दरी के दिल मे आग
लगा रहे थे । सुरसुन्दरी ने अपने आँचल के छोर से रत्नजटि की आंखे पोंछी ।

आगे अगली पोस्ट मे…

विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 6
September 27, 2017
विदा, मेरे भैया ! अलविदा, मेरी बहना! – भाग 8
September 27, 2017

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