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भीतर का श्रंगार – भाग 2

चारो रानिया सुरसुन्दरी से खिलखिलाते हुए कहती है- आज तो हम पक्का इरादा
करके आई है.. आज हम हमारी ननदिजी को सुंदर कपड़ो एवं कीमती अलंकारो से सजायेगी
! तुम मना मत करना ! नहीं करोगी ना ?
सुरसुन्दरी हंस पड़ी। उसने कहा ओह इसी बात कहने के लिए इतनी लम्बी प्रस्तावना
की !
ओर।। नही तो क्या ? उस दिन पहले पहले दिन जब हम तुम्हें सजाने-सवारने लगी तो
तुमने साफ मना कर दिया था ! ‘सही कहा तुमने उस रोज मेने मना किया था पर आज मैं
नही कर सकती ना ?
क्यो ? चारो रानिया एक साथ बोल उठी !
तुम्हारे प्यार ने मेरे दिल को जीत लिया है… मै तुम्हारी किसी बात का इंकार
नही कर सकती !
चारो रानियों की आंखे खुशी के आंसू से नम हो उठी उनका स्वर गदगद हो उठा
सुरसुन्दरी ने कहा तुम मुझे स्नेह का जो अमृत पान करवा रही हों वो में कभी भी
भी नही भूल सकती ! मेने तुम्हे पहले दिन क्यो श्रंगार सजने से इनकार किया था
उसका कारण बताऊ ?
हा… हा जरूर बताओ !
पति के विरह में मै श्रंगार रचाना पसंद नही करती और फिर मुझे बाहरी साज-सज्जा
का इतना शोक भी नही है परन्तु आज मै तुम्हे इनकार नही करने वाली,
बस खुश हो ना ?
‘अरे बहुत खुश दीदी
चारो रानिया झूम उठी। उन्होंने सुरसुन्दरी को श्रेष्ठ वस्त्र पहनाये, कीमती
अलंकारों से उसे सजाया सुरसुन्दरी का रूप पूनम के चांद सा खिल उठा।’
अच्छा, तुमने मुझे बाहरी श्रंगार दिया… अब मै तुम्हे अपना भीतरी श्रंगार
बताऊ क्या ?
‘हा… हा जरूर…. हम तो जानने को उत्सुक है’ चारो रानियां सुरसुन्दरी के
सामने बैठ गयी।
देखो… भाभी ! अपन को सम्यग्दर्शन की सुंदर साड़ी पहननी चाहिए ! सम्यग्दर्शन
यानी सची श्रद्धा ! वीतराग-सर्वज्ञ परमात्मा पर, मोक्ष मार्ग की आराधना-साधना
में रत सद गुरुओ… पर एवं सर्वज्ञ के द्वारा बताये गये धर्ममार्ग पर श्रद्धा
के वस्त्र ! यह अपना पहला श्रंगार है।

आगे अगली पोस्ट मे…

भीतर का श्रंगार – भाग 1
September 1, 2017
भीतर का श्रंगार – भाग 3
September 1, 2017

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