हजारों ब्राम्हण इस दनशाला की प्रशंसा सुनकर दूर दूर से वहाँ आने लगे।
विप्र देह में रहा हुआ राजा मुकुंद भी एक दिन अपनी नगरी लीलावती की दनशाला मे
चला आया। उसका मन काफी उदास था। मंत्री ने उसके पैर भी धोये एवं आधा श्लोक
बोला: वह सुनकर राजा चोका और उसने जवाब दिया :” कब्जोयं जायते राजा, राजा
भवती भिक्षुक:
यानी कि मंत्री ने कहा छह कान में गयी हुई बात फेल जाती है पर कुबड़े से नही
फ़ैलती राजा ने कहा यह कुबड़ा राजा बनता है एवं राजा भिखारी बनता है। मंत्री
सुनकर खुश हो उठे। उन्हें जिनकी तलाश थी वो असली राजा ब्राम्हण के रूप में मिल
गया। मंत्री ने राजा को हवेली में ले जाकर छुपाकर रखा। राजा से सारी बात जान
ली। फिर महामंत्री रानी के पास गये तो रानी का तोता मरा हुआ रानी की गोद मे
पड़ा था रानी आंसू बहा रही थी। चूँकि उसे अपना तोता बड़ा प्यारा था। मंत्री ने
अवसर देखकर कहा: ‘महादेवी, महाराजा को बुलाकर कहिये कि इस तोते को किसी दुष्ट
बिल्ली ने मार डाला है तोता मुझे जान से भी ज्यादा प्यारा है आप इसे किसी भी
उपाय से संजीव कीजिए योगी सन्यासी को बुलाकर, मंत्र पढ़वाकर भी इस तोते को
संजीव कीजिये बस फिर में आप कहोगे वैसा करुँगी यदि आपका मेरे पर सच्चा प्यार
है तो किसी भी तरिके से इस तोते को संजीव करे वर्ना इस तोते के साथ मैं भी
अग्निस्नान कर लुंगी।रानी ने राजा को उसी तरह से बुलाकर बात कही। राजा के शरीर
मे रहे हुवे कुबड़े ने सोचा में खुद ही तो मांत्रिक हु मेरी परकाय प्रवेश
विद्या के बल पर तोते के मृतदेह मे प्रवेश करके एक बार उसे जिंदा करके बता दु
रानी मेरे पर खुश हो जाएगी वो फिर मेरी दासी बन जायेगी ‘यो सोचकर उसने रानी से
कहा:
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