कुबडा राजा की भांति जीने लगा। इधर राजा के पछतावे का पार नही है..पर अब उसकी
सही बात को भी माने कौन ? कोई सबूत तो था नही ? वो राजा बेचारा ब्राम्हण के
वेश में परदेश को चला गया। उधर एक बार रानी ने राजा बने हुए कुबड़े से पूछा
‘स्वामिन, आपका वह कुबड़ा क्यो नही दिख रहा है..आज-कल ? पहले तो बेशरम कितना
आता जाता था ! राजा ने कहा जंगल मे जानवर ने उसको मार डाला.. अच्छा हुआ बला
टली..कितनी गंदी हरकतें करता था, कभी कभार तो। राजा मन मे सोचता है :बला टली
नही है.. बला तो तेरे पर सवार है ..तेरे साथ है.. और साथ ही रहेगी .. तुझे अभी
पता कहा है ? राजा रोजाना अंत:पुर में आता है घण्टो तक वही पड़ा रहता है राजकाज
में ध्यान नही देता है. कभी कभी तो बचकानी हरकते करता है रानी को ताजुबी होने
लगी:कुबड़े के मरने के बाद महाराजा में बहुत बदलाव आ गया है..उनकी वाणी उनकी
भाषा उनकी बोल चाल उनकी तोर तरीके सब कुछ बदला बदला सा लगता है..क्या हो गया
है राजा को ? रानी ने एक दिन मतिसार के समक्ष अपनी उलझन रखी। महामंत्री अनुभवी
थे। विचक्षण थे।उन्हें भी राजा का बरताव अजीबो-गरीब लग तो रहा था। उन्होंने
रानी से कहा: ‘महादेवी, मआप चिंता न करे कुछ ही दिन में भेद का पता लग
जायेगा। महामंत्री को मालूम था कि योगी ने राजा को ‘परकाय प्रवेश’ की विद्या
दी हुई है। उसके आधार पर उन्होंने कुछ अनुमान लगाया। महामंत्री ने एक दिन राजा
से कहा:’ महाराजा, आपके ग्रहयोग अभी ठीक नही है अतः राज पुरोहित के कहे अनुसार
यदि दनशाला चालू करें काफी दान-पुण्य करे तो ग्रहदशा सुधर जायेगी। राजा ने
अनुमति दे दी। महामंत्री ने दनशाला चालू करवा दी। दनशाला में कई तरह के याचक-
ब्राम्हण आने लगे। महामंत्री स्वयं उन सबके पैर धोते है एवं पैर धोते समय आधा
श्लोक बोलते है :’षटकार्यों भिधते मन्त्र: कुब्ज कनेव भिधते । इसके बाद सबको
भोजन वगेरह करवाते है।
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