विमानचालक ने उपचार वगैरह करके उसे होश मे लाया l जग कर उसने अपने सामने किसी अनजान खूबसूरत युवान को देखा l वो चौकी l सावध हो गई l मौका देखकर विमान मे से कूदने के लिये तैयार हो गई l विमानचालक ने उसको पकड़ ली l ‘मुझे रोको मत l मुझे जीना नहीं है…..मुझे मर जाने दो l’
‘तू है कौन ? तेरा परिचय तो दे मुझे ? तु क्यो मर जाना चाहती हो ? ऐसी कौन सी आफत में फंसी हो ?’
तुम क्या करोगे,यह सब जानकर ? मै अच्छी तरह जानती हूँ…तुम आदमी लोगो को l तुम मुझे अपनी पत्नी बनाने की बात करोगे…पर यह बात कभी भी हो नहीं सकेगी l तुम्हारे जैसे आदमी मुझे इससे पहले भी मिल चुके है l’
‘बहन ! हाथ की पांचों ऊंगलियाँ एक सी नहीं होती l दुनिया मे सभी आदमी कामी- विकारी या लंपट ही होते है क्या ? मैं तुझे अपनी बहन मानूंगा | तू मुझे भाई मान l और मुझे तेरा परिचय दे l मै तुझे सहायक होऊंगा | तेरे दु:ख को, होगा तो दूर करने का यत्न करूंगा |’
सुरसुंदरी ने कहा : ‘पहले तुम विमान को आकाश मे रोक दो l या फिर जमीन पर उतारो….फिर मैं तुम्हें मेरा परिचय दूंगी |’
विमानचालक ने आकाश मे अपने विमान को स्थिर किया | सुरसुंदरी ने अपनी रामकहानी शुरू से लेकर आज तक की कह सुनायी l
विमानचालक ने एकाग्रता-पूर्वक….सहानुभूति के साथ सारी बात सुनी l उसे एक महासती जैसी स्त्री बहन के रुप मे मिलने का आनंद हुआ l
सुरसुन्दरी ने पूछा : तुम कौन हौ ? तुम्हारा परिचय क्या हैं ?
बहन अब मै अपना परिचय दूँगा | वैताढ्य पर्वत का नाम तो तूने सुना होगा ?
‘हां…वैताढ्य पर्वत पर तो विद्याधर राजाओ के नगर है |’
‘ उसकी उतर श्रेणि का मैं राजा हूँ | मेरा नाम है रत्नजटी | मेरे पिता का नाम हैं मणिशंख व मेरी मां का नाम है गुणवती | मेरे पिता ने इस असार संसार का त्याग किया है| उन्होंने चारित्रधर्म अंगीकार किया हैं | नंदीश्वर दिव्प पर वे कठोर तप कर रहे है | वे समता के सागर है| मै उन्हीं के दर्शन-वंदन करने के लिये नंदीश्वर दीव्प पर गया था | वहां से वापस लौटते वक्त अचानक मुझे बहन सुरसुन्दरी मिल गयी | पूर्व जन्म के अनंत अनंत पुण्य है तब तेरे जैसी बहन मिले| अब तू बिल्कुल निश्चिंत होकर मेरे साथ मेरे नगर में चल | मेरी चार पत्नियां हें | वे भी बड़े बड़े राजा महाराजा की बेटिया है | उनमे रूप – रंग व रस का अद्भुत सामंजस्य है |’
‘मै तुम्हारे साथ आऊ तो सही…. पर मेरी एक इच्छा यदि तुम पुर्ण करो तो ?’